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समर्पण
ANABAD
भगवती अहिंसा के चरणोंमें
अनुज्ञायाचन भगवनि !
जगको तेरी कथा सुनाऊं। जलता है संसार आग में उस पर दो आँसू टपक्राऊं ॥
जगको तेरी कथा सुनाऊं ॥१॥ अगणित रूप अनंत चाति है ।
पारम्परिक विरोध नरित हैं । सकल-विरोध-समन्वय-कारिणि, तेरा व्यापक रूप बताऊं ।
जगको तेरी कथा सुनाऊं ॥२॥ छोटासा यह चित्र बनाया।
है तेरी धुंधलीसी छाया । पार कहां पाऊँ तेरा में सागर-जल गागर में लाऊं ।
जगको तेरी। कथा सुनाऊं ॥३॥
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तर दास
दरबारीलाल सत्यमन