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सन्यामृत
है । दूसरों की महत्ता समझते हुए भी, अपने धन इनके त्याग करने से मनुष्य संयमी बनता है । अधिकार आदि के कारण उसे तुच्छ समझना बाकी की मनोवृत्तियों में उत्तम श्रेणी की कुछ मान काय है, या इस विचार से उसकी महत्ता संयम रूप हैं कुछ असंयम को रोकने वाली हैं न माना कि इससे अपना व्यक्तित्व फीका पड़ ये आवश्यक हैं । बाकी मध्यम श्रेणी की मनोजायगा, मान कवाय है।
वृत्तियाँ जीवन चिह्न हैं स्वाभाविक ह क्षन्तव्य हैं। मोह और मान ये दो कषायें समस्त पापों पाप इन में तभी है जब ये कषायरूप हो जाती के मूल हैं।
हैं। फिर भी जहां तक बन सके अरुचि को घटाना छल अपना अनुचित स्वयं सिद्ध करने चाहिये क्योंकि अरुचि से अपने को कष्ट होता है के लिये किसी की अजानकारी की ओट लेना और दूसरों पर भी इससे दुःख की छाया पड़ती है। छल है। मालिक की अजानकारी की ओट लेकर चार कषायों में मोह और मान हस्तकषायें चर चंग करना है यह छल है, कोई साधु- हैं और क्रोध और छल ये शस्त्रकषायें हैं
कर दुनिया को अजानकार बनाकर साधु क्योंकि क्रोध और छल से आघात किया जाता भाचरण नहीं करता है यह छल है, मन में है और मोह और अभिमान क्रोध और छल को प्रेरित
छ और है पर मुँह से कुछ और कहकर करते हैं, जैसे हाथ शस्त्र को प्ररित करता है । पर्थात् झूठ बोल कर दुस्वार्थ सिद्ध करना छल हाथ जैसा जोर लगायगा शस्त्र उतने ही जोर से :चेरी विश्वासघात दंभ आदि सब छल के ही आघात करेगा उसी तरह मोह अभिमान जितने ये हैं। हां, जहां अनुचित स्वार्थ न हो वहाँ प्रबल होंगे क्रोध और छल उतना ही तीव्र जानकारी की ओट लेना छल नहीं है। जैसे होगा । मोह और अहंकार के दबा देने से क्रोध । मित्र विनोद के लिये तास खेल रहे हैं, तास और छल भी दब जाते हैं। खेल में पत्तों को छुपाकर रखना पड़ता है
तेज और छाया-उत्तम श्रेणी की मनोवृत्ति तरे को पता लग जाय तो खेल का रस चला
के दो रूप है तेज और छाया । जब उत्तम मनो(य यह अजानकारी का उपयोग छल नहीं है
वृति स्थिर होती है, उसके अनुसार हमारा जीवन गोंकि इसमें कोई अनुचित स्वार्थ नहीं है। मैं
भी बन जाता है तब उसे तेज कहते है। अहंत पने घरू लड़ाई झगदा को बाहर नहीं कहता
योग, आदि के यही हुअ, करता है । परन्तु जब कि बाहर कहने से कौटुम्बिक कलह बढ़ता है
उत्तम श्रेणी का मनोमाव स्थानी नहीं होता तब ध की कालिमा क्रोध की रिह बनता है तो इस
उसे छाया कहते हैं । छायाचित्र में सफेः कपड़े पर दूसरों की अजानकारी की ओट लेना छल
पर ही सब दृश्य दिखते हैं पर हेता कुछ नहीं है क्योंकि इसमें कोई अनुचित स्त्र थ नत्री हैं। इसी प्रकार उत्तमश्रणी की मनोवृत्ति का क्षणिक
मनीवत्तियों के इन सब भद प्रभेदों में मोर, आवेग होता है इसे छाया कहते हैं। जैसे मरघट ध, मान और छल, ये चार की मनोवृत्तिा में वैराग्य आ जाता है और जीवन पर उसका
है जिन्हें कषाय कहते हैं भगवती अहिंसा कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ता। जीवन की उत्तसाधना के लिये इनका त्याग करना चाहिये। मता तेज से है छाया से नहीं। .