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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म धर्मोपदेश सुनता रहा। उपदेश समाप्त होनेपर राजा और अन्य लोग अपनेअपने घर चले गये। परंतु आनन्द गृहपति वहीं रह गया और महावीर स्वामीसे बोला, “ भगवन्, मैं निर्ग्रन्थ-शासनमें श्रद्धा रखता हूँ और उस शासनका स्वीकार करता हूँ । परन्तु मैं गृहस्थाश्रमका त्याग करने में असमर्थ हूँ । अतः मैं पाँच अणुव्रतों और सात शिक्षा व्रतोंको मिलाकर बारह व्रतयुक्त गृहस्थधर्म ग्रहण करता हूँ । "" ४८ महावीर स्वामी बोले, “हे देवानुप्रिय, इस काम में विलम्ब मत करो। " तब आनन्द गृहपतिने महावीर स्वामीके पास स्थूल प्राणघातका प्रत्याख्यान किया कि, " मैं आजीवन काया - वाचा मनसे प्राणघात नहीं करूँगा और न करवाऊँगा । " असत्यका प्रत्याख्यान किया कि, 66 मैं काया-वाचा-मनसे असत्याचरण नहीं करूँगा और न करवाऊँगा ।" उसने स्वस्त्री संतोषव्रतको इस प्रकार स्वीकार किया कि, “एक शिवनन्दा भायाको छोड़ अन्य किसी भी स्त्रीके साथ मैं समागम नहीं करूँगा।” इच्छविधि ( परिग्रह ) के परिमाण व्रतको इस प्रकार स्वीकार किया कि, 66 चार करोड़ ज़मीनमें गाड़ी हुईं, चार करोड़ व्यापारमें लगाई हुईं, और चार करोड़ प्रविस्तरमें लगाई हुईं सुवर्ण मुद्राओंके अलावा अन्य सभी सुवर्ण मुद्राओंका मैं त्याग करता हूँ । मैं इतनी ही खेती रखूँगा जिसमें पाँच सौ हल चल सकें, अधिक नहीं रखूँगा । ४० हज़ार गायोंके अलावा अन्य गायोंका मैं त्याग करता हूँ । चार बड़े जहाजों और किश्तियों को छोड़ और नौकाए मैं नहीं रखूँगा । पाँच सा गाड़ियोंकी अपेक्षा अधिक गाड़ियाँ नहीं रखूँगा । " इसके बाद उसने उपभोग - परिभोगकी सीमा निर्धारित की । ( अधिक विस्तार के भय से वह प्रकरण यहाँ नहीं दिया जा रहा है । ) फिर महावीर स्वामी आनन्दसे बोले, " जीवाजीव जाननेवाले श्रमणोपासक के सम्यक्त्वके ये पाँच अतिचार हैं : -- ( १ )
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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