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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
अध्ययन किया । इससे उसे बड़ी ख्याति प्राप्त हुई और उसने आजीवक पंथकी प्रस्थापना की।"+
महावीर स्वामीकी प्रव्रज्याका जब २७ वाँ वर्ष चल रहा था, तब गोसाल श्रावस्तीमें रहता था । वह अपनेको 'जिन' कहलवाता था। परंतु महावीर खामीका कहना था कि वह जिन नहीं है । इससे विवाद खड़ा हुआ और गोसालने महावीर स्वामीपर तेजोलेश्या छोड़कर कहा, " आयुष्मन् काश्यप, मेरे इस तपस्तेजसे तुम पित्त एवं दाह ज्वरसे पीड़ित होकर छह महीनेके अन्दर मर जाओगे।” इसपर महावीर स्वामीने उत्तर दिया, “ गोसाल, तेरे तपस्तेजसे तेरा ही शरीर दग्ध हुआ है । मैं तो अभी १६ बरसतक जीवित रहनेवाला हूँ। परंतु तू ही पित्तज्वरकी पीड़ासे सात दिनके अंदर मर जायगा ।"* तब गोसाल वहाँसे अपने निवास-स्थानमें गया। उसकी तेजोलेश्याने उसीके शरीरमें प्रवेश किया था, जिससे उसकी स्थिति बड़ी दयनीय हो गई । दाहको शमन करनेके लिए वह लगातार एक आमकी गुठली चूस रहा था, शराब पी रहा था और मिट्टी मिला हुआ पानी शरीरपर छिड़क रहा था। उन्मादवश होकर वह नाच रहा था, गा रहा था और हालाहला कुम्हारिनको ( जिसकी भाण्डशालामें वह रहता था ) नमस्कार कर रहा था । ऐसी परिस्थितिमें जब उसकी मृत्यु समीप आ गई तो वह अपने शिष्योंसे बोला, " xए भिक्षुओ, अब मैं शीघ्र ही मरनेवाला हूँ। मेरे मर जानेके बाद तुम लोग मेरे शवके बायें पैर में गूंज ( नामक ) घासकी रस्सी बाँधो और मेरे मुँहपर तीन बार थूको। फिर वह रस्सी पकड़कर
+ श्रमण भगवान् महावीर पृष्ठ २५-३७ * महावीर स्वामी काश्यपगोत्रके थे। इसलिए उन्हें काश्यप कहते थे । . x श्र० भ० म० पृ० १२२-१३८