________________
इस बातका प्रमाण नहीं मिलता कि रोटी-बेटीका व्यवहार बंद करनेके बादके कालमें निरामिषभोजी लोगोंने अपने इस तत्त्वका प्रचार कहीं भी सफलतापूर्वक किया हो। इसके विपरीत ऐसे उदाहरण जगह-जगह पाये जाते हैं कि निरामिषभोजी लोग स्वयं ही शिथिल बनकर धीरे धीरे लुक-छिपकर या खुले तौरपर मांस खाने लगे हैं। अहिंसा-धर्म जब तक अग्निके समान उज्ज्वल और पावक होगा, तब तक उसे औरोंके सम्पर्कसे डर नहीं रहेगा । जब यह धर्म रूढिके तौरपर जड़ताके साथ बने रहनेकी चेष्टा करता है, तभी उसे अपने चारों ओर बहिष्कारकी दीवारें खड़ी करके अपनी रक्षा करनी पड़ती है और फिर वह निःसत्व बनकर 'जीता' रहता है। ___ इस निबन्धके अन्तमें धर्मानन्दजी कोसम्बीने पार्श्वनाथकी मारणांतिक सल्लेखनाका थोड़ा-सा ऊहापोह किया है । पार्श्वनाथकी तरह स्वयं भी इसी प्रकार देहत्याग करनेका संकल्प धर्मानंदजीने कर रखा था और उत्तपर अमल करना भी शुरू कर दिया था; परन्तु महात्मा गाँधीने उन्हें इससे परावृत्त किया। मगर एक बार जीनेकी वृत्तिको उन्होंने जो पीछे खींच लिया, तो वह फिर दृढ़ नहीं बन सकी और इसी लिए उनका देहान्त हो गया। अतः इस मारणांतिक सल्लेखनाको तात्त्विक चर्चासे अधिक महत्त्व प्राप्त हो गया है। मारणांतिक सल्लेखनाका अर्थ है प्रायोपवेशन या आमरण उपवास ।
अपने हाथों अक्षम्य महापातक हुआ हो तो कई लोग प्रायश्चित्तके तौरपर अन्न-त्याग करके देह-त्याग कर देते हैं । अपनी की हुई प्रतिज्ञाका पालन न हो सकनेके कारण भी लोगोंद्वारा देह त्याग किये जानेके उदाहरण हम पढ़ते हैं । “ विकारी वासना उत्कट हो गई है और संयम नहीं रहा है, इस प्रकारका अनुभव जिसे अपने विषयमें हो जायं और जिसे ऐसा लगने लगे कि उसके हाथों पाप ज़रूर हो जायगा, तब पापको टालनेके लिए वह स्वेच्छासे देह-त्याग कर सकता है। वैसा करनेका उसे अधिकार है । परन्तु यदि पाप हो चुकने के बाद उससे उपरति हो गई है, तो प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होना ही अच्छा है। पापके विषयमें उपरति हो