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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
उनपर अपना प्रभाव या अधिकार लादते हो, तो सोवियत सरकार आसपासके देशोंमें साम्यवादका प्रसार करती है, तो उसमें तुम्हारा क्या जाता है ? ” “ हमारा क्या जाता है ? वाह ! अगर धीरे धीरे कम्यूनिज़्मका प्रसार होता जाय, तो फिर हमारा साम्राज्य और हमारा मनरो डाक्ट्रीन कैसे टिक सकता है ? क्या यह साम्यवाद हमारे दरवाजोंपर नहीं आ धमकेगा ? इसीलिए आवश्यकता पड़नेपर परमाणु बमोंसे भी कम्यूनिज़्मका प्रतिकार करने को हम तैयार हैं। और यदि हमारे मज़दूरोंका डर हमें न होता तो हमने यह काम कभीका शुरू कर दिया होता ! ".
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परंतु जब तक सारी दुनियाके राष्ट्रों में सोवियत समाज जैसा समाजनिर्माण नहीं होगा, तब तक संसारको लड़ाइयोंसे मुक्ति नहीं मिलेगी । जब सारे राष्ट्र अपरिग्रही बनेंगे तभी संसार में अहिंसा और सुख-शान्ति आएगी ।
ब्रह्मचर्य
कुछ साधु ब्रह्मचारी' रहें और राजा-महाराजा चाहे जितनी स्त्रियाँ और वेश्याएँ रख तो ऐसे ब्रह्मचर्य से समाजको विशेष लाभ नहीं हो सकता, यह बिलकुल स्पष्ट है। सभी जानते हैं कि वैश्याओं और उनसे सम्बन्ध रखनेवाले पुरुषोंके द्वारा समाजमें भयंकर रोग फैलते हैं । यह जानकारी स्वयं वेश्याओं और उनसे सम्बन्ध रखनेवाले अज्ञ पुरुषोंको करा देनेके लिए सोवियत रूस में तरह- तरहसे प्रचारकार्य जारी है। जब तक बहुपत्नीत्व और वेश्याव्यवसायका निर्मूलन समाजमेंसे नहीं हो जाता, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि समाजको ब्रह्मचर्यका भान हुआ है ।
एकपत्नीव्रत में भी विषय - सेवनका अतिरेक नहीं होना चाहिए । आजकल शिक्षित लोग अधिक सन्तानें नहीं चाहते । एक-दो बच्चे