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________________ वृहत्तरके लिए कुछ समय पश्चात् पराजित राजाको बन्दीगृहसे मुक्त कर दिया गया । वह विजयी राजाकी एक सामान्य प्रजाके रूपमें ग्लानिपूर्ण जीवनके दिन काटने लगा। ___उधर उस छोटे सेनाधिकारीने अपने साथियोंकी सहायतासे पर्वतके शिखरपर एक सुदृढ़ किला बनाया। पर्वतके उस पारकी भूमिपर उसने खेती की। यह भूमि अत्यन्त उपजाऊ थी और अनधिकृत पड़ी हुई थी। पर्वतके उसी ढालपर उसने धीरे-धीरे एक छोटा-सा नगर भी बना लिया। ___ इतना कर लेनेके पश्चात् उसने एक सैनिकको गुप्त रूपसे अपने राजाके पास भेजकर उसे राजपरिवार सहित वहाँ आनेका निमंत्रण दिया । व्यवस्थानुसार एक रात राजा अपनी रानियों, राजपुत्रों और पुत्र-वधुओं सहित निकल पड़ा और इस नये पार्वत्य नगर में पहुंच गया। किलेके द्वारपर इस छोटे अधिकारीने राजाका अभिनन्दन किया और भीतर ले जाकर उसे नव-निर्मित, रत्न-जटित सिहासनपर बिठाया। राजाके सामने करबद्ध खड़े होकर उसने निवेदन किया____इस पार्वत्य प्रदेशकी प्राकृतिक रमणीयता और समद्धिने मुझे प्रधान सेनापतिकी और इस प्रकार परोक्ष रूपमें स्वयं महाराजको आज्ञाका उल्लंघन करनेके लिए विवश कर दिया था। यहाँको जलवायु अत्यन्त सुखद एवं अनुकूल है। यहाँ शरद् ऋतुमें मेध-मालाएँ कभी भी सूर्यको नहीं ढकतीं और बारहों महीने रजनीके निरभ्र आकाशमें खिली हुई चन्द्रकलाएँ पर्वत-शिखरसे फूटनेवाले झरनोंमें अठखेलियाँ करती रहती है । पार्वत्य ढालके नीचे समुद्र तटपर फैली धरती अत्यन्त उर्बरा एवं धान्य-मयी है । यह देश विस्तारमें आपके और शत्रुके देशोंके सम्मिलित क्षेत्रफलसे भी अधिक है। यहांके आदिनिवासी बहुत सीधे-सादे, शान्तिप्रिय, कृषि-कुशल तथा शक्ति एवं गुणके प्रति श्रद्धालु हैं। वे सभी अब हमारे मित्र और सहायक तथा आपकी प्रजा हैं । इस प्रदेशके गर्भ में कुछ स्थलोंपर बहुमूल्य
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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