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________________ भव-सागर अपनी पीठ और कन्धोंपर लादकर और कुछ अधिक समर्थ जनोंको अपने हाथोंकी उँगलियोंमें ही लटका कर ये उस पार ले जानेका उपक्रम करते थे। इस प्रकार कितने लोग उस पार पहुंच जाते थे; यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु बीच पानीमे शिथिल होकर अनेक जनोंके डूबनेकी दुर्घटनाएँ इस पार खड़े गांववालोंकी आँखों देखी एवम् सुपरिचित थीं। एक बार अकाल और महामारीका ऐसा भयंकर प्रकोप इस गाँवपर आया कि सभी लोग त्राहि-त्राहि कर उठे। गाँव छोड़कर उस पार जानेके अतिरिक्त उनके पास कोई चारा न रह गया। लोगोंको आंतरिक पुकार पर भूधराकार देवताओंका एक बड़ा वर्ग अबकी बार उनके गाँवमे आ गया। इन दानव-काय देवताओंकी पोठों, शिरों और कंधोंपर सहस्रों मनुष्य चढ़ गये और उनसे भी दसगुने उनकी कमरोंमे बँधी कटि-मेखलाओंको पकड़कर लटक गये। वे पानीमें उतरनेको ही थे कि उन ग्राम-मानवोंमे-से ही एकने ललकार भरे स्वरमें कहा___'मेरे स्वजनो, तुम इन देवताओंकी कायाओंसे नीचे उतर आओ। इनके सहारे जानेवालोंमें से बहुतोंको पानीमें डूबते तुम अनेक बार देख चुके हो। इस उपायको विफलता और भयंकरता तुम्हारी सुपरिचित है। वास्तवमें उस पार जानेके लिए इनके आश्रयकी तुम्हें तनिक भी आवश्यकता नहीं है । तुम मेरे साथ बिना कोई आश्रय लिये अपने पैरोंके सहारे इस जलाशयको स्वयं निर्विघ्न रूपमें पार कर सकते हो ।' ___ इस तरुण, अति सामान्य दीखनेवाले ग्रामवासीकी सलाह माननेवालों की एक छोटी-सी संख्या उन लोगोंमें निकल आयी। तीव्र गतिसे जानेवाले भूधराकार देवताओंकी कायाओंपर लदे व्यक्तियोंके पीछे ये लोग भी पानीमें हिल पड़े। मानव-पग-गतिसे हो ये लोग अपने मानव नेताके साथ पानीमें आगे बढ़े । तटपर अवशिष्ट कुछ लोगोंके सोथ इन पग-चारियोंने भी
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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