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________________ नया व्यवसाय किसी नगरके एक मध्यकोटिके व्यवसायीको एक नया व्यवसाय सूझा। अपना प्रचलित, प्रतिष्ठित व्यवसाय बन्द करके उसने अपने धनिक मित्रों, परिचितों और अपरिचितोंको इस आशयके पत्र लिखने प्रारम्भ किये कि वह बहुत कठिन आर्थिक संकटमें है और सौ मुद्राओंकी सहायता पाकर वह उस संकटसे मुक्त और अपने सहायकका चिर अनुगृहीत हो सकता है । इस प्रकारके कुल एक सहस्र पत्र उसने लोगोंको लिखे । इस नये व्यवसायसे उसकी मान-प्रतिष्ठा लोगोंमे बहुत घट गई । जिन एक सहस्र व्यक्तियोंसे उसने पैसा माँगा उनमेसे कुल तीसने उसकी प्रार्थना स्वीकार की-दसने मुंहमांगा धन उसे दे दिया और बोसने आधा-तिहाई देकर ही अपना पिण्ड छुड़ाया । फलतः घरकी भी पूँजी खाकर वह धीरे-धीरे एक निर्धन भिखारीके ही स्तरपर पहुँच गया और अन्तमें एक भिखारीकी ही मौत मर गया। मरकर जब वह स्वर्गमें पहुँचा तो स्वर्गके न्यायालयके सामने आनेके पहले ही उसने अर्जी लगा दी कि उसका न्याय बीस वर्षके लिए स्थगित कर दिया जाय । स्वर्गके नियमोंके अनुसार उसकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली गई और उसे स्वर्ग और पृथ्वीके बीच भुवलॊकमें .रहनेका स्थान दे दिया गया। बीस वर्ष बाद जब वह स्वर्गके न्यायालयमें उपस्थित हुआ तबतक वे सभी एक सहस्र मनुष्य, जिनसे उसने धनकी याचनाएँ को थीं, पृथ्वीका जीवन समाप्त करके स्वर्गमें पहुँच गये थे। स्वर्ग-लिपिकोंकी बहियोंके अनुसार वह व्यक्ति ९७० व्यक्तियोंका सौ-सौ मुद्राओंका और २० व्यक्तियोंका सौ-सौसे कुछ कम, कुल मिलाकर
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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