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________________ निन्नानबे और सौ और यथासमय ब्रह्माजीने सुख और दुःखके सौ देवताओंका एक दल मनुष्योंकी पृथ्वीपर भेज दिया। उनके सबसे बड़े राज-नगरके महामन्दिरमें मनुष्योंकी अवतरित हुआ। नाओंकी सौ-सौ इन सुख और दुःखके देवताओंकी सौ-सौ पहचानें उन्होंने पहलेसे ही मनुष्योंके शास्त्रों और धर्मग्रन्थोंमें लिखा रक्खी थीं। ___मानव-शिशुके रूपमें जन्म लेकर आनेवाले इन देवताओंमें सुखदेवोंकी सौमे-से पहली, सबसे मोटी पहचान यह थी कि वे रंगके स्वर्णवर्णी होंगे, और सबसे अन्तिम तथा झोनी यह कि उनके दाहिने कानके पीछे एक छोटा, कठिनाईसे दीखनेवाला, उभरा हुआ नीला तिल होगा। इसी प्रकार दुःखदेवोंकी सबसे पहली, मोटी पहचान यह लिखी थी कि वे रंगके ताम्रवर्णी होंगे और सबसे झीनी यह कि उनके बायें कानकै पीछे एक उतना ही छोटा उभरा हुआ काला तिल होगा। ___ मनुष्य लोग सुखके देवताओंको ही अपनी धरतीपर रखना और दुःखदेवोको वापस विदा कर देना चाहते थे । शास्त्रोंमें इसके लिए विधान दिया हुआ था-पीले फूलोंकी माला जिन देवताओंको पहना दी जायगी वे पृथ्वीपर टिक जायेंगे और जिन्हें काले फूलोंकी पहनाई जायेगी वे तुरन्त यहाँसे लौट जायेंगे। __ मनुष्योंने शास्त्रोक्त चिह्नोंके अनुसार उन्हें सुखद और दुःखदके वर्गोमें अलग-अलग कर लिया। सुनहले और तंबहले दोनों वर्गके शिशुओंमें सुखदेवोंके और तंबहले शिशुओंमें दुःखदेवोंके अधिकांश लक्षण पहली ही दृष्टिमे देखे जा सकते थे। .सुखद और दुःखद वर्गोंके शिशु-रूप देवदूतोंको महामन्दिरके उत्तर और दक्षिण पावोंमें अलग-अलग पालनोंपर लिटा दिया गया था और
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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