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________________ थके विजेता लिए यथेष्ट स्वस्थ हो और अपने वाहक अश्वको अपना सहयोगी मित्र बना सके हो।' इतना कहकर राजाने उसे अगली मंज़िलके किसी दुर्गम प्रदेशके राजाके पास ले जानेके लिए अपना लिखित सन्देश-पत्र सौंप दिया और शेष छह सवारोंको कुछ धन देकर छुट्टी दे दी। आवश्यक समयके भीतर राजकीय सन्देशको अभीष्ट स्थानपर पहुँचानेका सामर्थ्य उनमें नहीं रह गया था। इस अन्तिम सवारने अपने घोड़ेको पहले तीन दिन तक स्वच्छन्द रूपसे स्वेच्छित दिशाओंमें दौड़ने-विचरनेकी पूरी छूट दे दी थी। तीन दिन तक वह घोड़ेकी दौड़के समय उसका केवल पीठका साथी तथा विश्रामके समय उसका सहायक और सेवक रहा था। चौथे दिन वह अपने घोड़ेके विश्रामका संगी और विश्वासपात्र नायक बन सका था। पांचवें दिन और रातकी दौड़में विपरीत दिशाओंकी भटकी हुई दूरियाँ पार करके वह अपने नगरको लौट आया था, और छठा दिन विश्राम एवं सुख-सेवनमें बिताकर छठी रातकी सुहावनी चाँदनीमें निर्दिष्ट स्थानपर जा पहुंचा था। x मेरे कथागुरुका कहना है कि संसारमें इस समय अश्वारोहियोंकी संख्या ढाई अरबसे कम नहीं है, किन्तु वे अपने घोड़ोंको साधने और समयके भीतर किसी प्रारम्भिक मंज़िलतक पहुँचाने में इतने थक जाने हैं कि दूसरी अभीष्ट मंजिलकी ओर बढ़नेका दम उनके शरीरमें नहीं रह जाता । साथ ही सबसे बड़े आश्चर्यकी बात यह है कि उन्हें अपने अश्वारोही होनेका प्रायः पता ही नहीं होता और वे स्वयंको पदचारी पयादा ही समझे रहते हैं। मेरे कथागुरुके इस अन्तिम संकेतका अभिप्राय क्या आपके सामने पूर्णतया स्पष्ट नहीं है ? X
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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