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केवल भिक्षा कम्बुराज नीलोपमके देशमें एक बार अकाल पड़ा। अन्नाभावसे प्रजाके भूखों मरनेकी नौबत समीप आ गयी।
नीलोपमकी दृष्टि पड़ोसके राज्य द्वीपकपर गयी। यह राज्य धन-धान्यसे परिपूर्ण था।
नीलोपमने द्वीपक-नरेशको संदेश भेजा कि वह उसकी अधीनता स्वीकारकर कर भेजनेकी व्यवस्था करे अन्यथा युद्धके लिए प्रस्तुत हो । ___ द्वीपक-नरेशने उत्तर भेजा कि उसे कम्बु-निवासियोंकी अकालजनित परिस्थितिसे सहानुभूति है और वह उनसे कुछ व्यापारिक सहयोगके बदले उन्हें खाद्यान्न देनेको सहर्ष प्रस्तुत है। द्वीपक-राज्यके कुछ कच्चे मालको व्यवहारोपयोगी वस्तुओंमे परिणत करके कम्बुनिवासी सहज ही अपनी रोटियां कमा सकते हैं। कम्बुराज इस उत्तरसे तिलमिला उठा । द्वीपकनरेशके प्रस्तावको स्वीकृति उसके लिए अत्यन्त लज्जास्पद और अपमानजनक थी। द्वीपक-राज्यपर आक्रमणकी तैयारीके आदेश उसने उसी दिन अपनी सेनाको दे दिये।
उसी रात एक युवक याचक नीलोपमके महल-द्वारपर उपस्थित हुआ, भोजन और एक रातके आश्रयकी याचना लेकर। उसने बताया कि वह किसी राजकुलका ही वंशज है। देशाटन करते एक बटमारने उसका समस्त धन छीन लिया, तबसे वह इसी प्रकार मांगता-खाता अपने देशकी ओर जा रहा है।
'तुम ब्राह्मण नहीं, साधु नहीं, वृद्ध और पंगु भी नहीं फिर भी नीच भिक्षा वृत्तिसे अपना निर्वाह करते हो, यह तुम जैसे हृष्ट-पुष्ट व्यक्तिके लिए अत्यन्त अनुचित और अशोभन है' नीलोपमने तिरस्कार-मिश्रित स्वरमे कहा।