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________________ अचुम्बित चुम्बन दस वर्षको अखण्ड साधनाके पश्चात् रूपकी देवीका स्वर उसने फिर सुना : 'तुम्हारी प्रेम-साधना सम्पन्न हुई मेरे आराधक, अब तुम्हीं मेरे आराध्य हुए। मैं यह आयी।' उसने आँखें खोली। देवी सम्मुख थी। अबकी बार एक नये ही शरीरमें विपुलतर सौन्दर्य, नयो आँखोंमें मदिरतर समर्पण और नये होठोंमे चुम्बनका मधुरतर रस लिये। उसका मुख उन अधरोंकी ओर बढ़ा और उसकी बाँहें दो सुदृढ लोहशलाकाओंसे जा टकरायीं। उसने अब देखा, उसके और उस रूपमतीके बीच लौह-छड़ोंसे निर्मित एक ऊंची दीवार थी । वह ठिठक गया । ___'मेरी स्थिति यही है। युग-परम्पराकी वन्दिनी, युग-मर्यादा द्वारा निर्मित इस लौह-शलाकाओके वृत्त-महलमे ही मेरा निवास है। कारावासकी शलाकाओके इस कार मैं अपने सहस्र-सहस्र रूपोंमें अपने प्रेमियोंके स्पर्शके लिए तड़पती रहती हूँ, उस पार वे तड़पते रहते हैं। किन्तु इससे क्या ! आगे आओ ! इन दो शलाकाओंके बीच इतनी दूरी है कि तुम उसकी राह मेरे मुखका चुम्बन ले सकते हो।' देवीने कहा। वह स्थिर, निश्चेष्ट खड़ा रहा। 'तुम मेरे आवक्ष आलिंगनके लिए आतुर हो। उसके लिए तुमसे अधिक आतुर मैं हूँ। तब यह लो, इस तीक्ष्ण लौह-खंडिनीसे इनमें से एकदो शलाकाओंको काटकर तुम मेरे पास आनेका मार्ग बना सकते हो।' कहते-कहते उस सुन्दरीने दो शलाकाओंकी बीन संधिसे एक पैना अस्त्र
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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