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मोतियोंकी खेती अन्न और वस्त्रके आगे जब मनुष्योंको और भी ऊँची सम्पदाओंकी आवश्यकता हुई तो देवताओंने एक विशेष उपजाऊ देशके लोगोंको मोतियों के कुछ दाने भेंट किये। देवताओंने उन्हें बताया कि अपने खेतोंमें इन मोतियोंकी खेती करके इनके द्वारा वे लोक-परलोककी सभी सम्पदाएँ प्राप्त कर सकेंगे।
मनुष्योंने अपने अन्नके खेतोंमें इन मोतीके दानोंको भी बो दिया । अन्न के साथ-साथ इन मोतीके दानोंसे भी अंकुर उगे और यथासमय इनकी भी बालें पक कर तैयार हो गयीं। एक-एक मोतीके पौदेमे दस-दस बालें, और एक-एक बालमें सौ-सौ मोती लगे। मोतियोंकी इस असाधारण फसल से लोगोंके हर्षका पारावार न रहा। ___ फसल कटनेके त्यौहारका दिन आ पहुँचा । लोगोंने अबकी बार चौगुने समारोहके साथ फसलके देवताकी पूजा की और अपने-अपने खेतोंमें फसल काटने जा पहुंचे। उन्होंने बहुत यत्नके साथ चुन-चुन कर पहले मोतियोंकी बालोंको ही काटा और उन्हें बहुत सम्हाल कर अलग रख लिया। इसके पश्चात् उन्होने अन्नकी कटाई की। अन्न उन्होंने अपने अन्न-भंडारोंमें भर लिया और मोतियोंको अलग कपासके थैलोंमें भरकर उनसे देश-देशान्तर और लोक-लोकान्तरके साथ व्यापारकी तैयारियां करने लगे।
किन्तु उन किसानोंमें एक ऐसा भी था जिसने अपना खेत बिल्कुल नहीं काटा । जब सबकी फसल कट कर घर आ गयी तब एक रात उसने अपने पके-खड़े खेतमें आग लगा दी। दूसरी सुबह उसके खेतमे जली हुई राख की एक तहके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था।