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________________ मेरे कथागुरुका कहना है व्यक्तिगत जीवनमें दो विशेष बातें उसे ज्ञात हुई : उनमें से एक हर रातको देवालयमें जाया करता था और दूसरा एक वेश्यालयमें। . शासन-गृहके कुछ और अधीनस्थ कर्मचारियोंके सम्बन्धमें भी राजाने कुछ जाँच-पड़ताल की और तत्पश्चात् अपना अंतरंग दरबार आयोजित किया। इस दरबारमें राजाने दोनों उपशासकोंको अपदस्थ करके एक अन्य अधीनस्थ कर्मचारीको उस राज्यका उपशासक घोषित करते हुए कहा 'इन दोनों अधिकारियोंको अपने कर्तव्य-कार्यमे जो पूर्ण तृप्ति मिलनी चाहिए थी वह नही मिली और इसीलिए यहाँको सुन्दरियोंका रूप दोनोंके मानसिक संतुलनमे विक्षेपका कारण बन गया। उससे बचनेके लिए पलायन पूर्वक एकने वेश्याका आश्रय लिया और दूसरेने देव-मन्दिरका। वेश्याकी अपेक्षा मन्दिरका आश्रय लेना किसी दृष्टिसे कुछ अच्छी बात मानी जाती है किन्तु दोनोंमें कोई मौलिक अन्तर नहीं है । वेश्याके पास जानेवाला एक दिन वेश्यासे विरस होकर मन्दिरमे जायेगा और मन्दिरमे जानेवाला एक दिन विचलित होनेपर अवश्य ही मन्दिरसे अतुष्टिका अनुभव करके वेश्याका आश्रय लेगा। अतएव यह तोसरा नवयुवक कर्मचारी जो अपनी योग्यता एवम् कार्य-पटुताके कारण दोनों अधिकारियोंका समान सम्मानभाजन हुआ है और जिसने यहाँ आते ही अपनी मनोनुकूल यहाँकी एक सुन्दरी तरुणीके साथ विवाह कर लिया है, और जिसे यहाँके प्रजाजनका भी सबसे अधिक सम्पर्क प्राप्त है, इस देशका उपशासक होनेके सर्वथा योग्य है और इसे ही मैं इस पदपर आसीन करता हूँ।'
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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