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________________ नया लक्षण किसी नगरमें एक परम तेजस्वी साधु आया। उसके तेज, पाण्डित्य और चुम्बकीय आकर्षणने सारे नगरका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। बहुत-से लोग उसके भक्त हो गये। उसके व्यक्तित्वसे प्रभावित तो सभी लोग थे, धीरे-धीरे नगरमें चर्चा फैल गई कि वह एक जीवन्मुक्त, स्थितप्रज्ञ, परमहंस महात्मा है। अपने प्रवचनोंमें वह इन परम गतियोंको पहुँचे हुए पुरुषोके लक्षण श्रोताजनोंको बताता था और वे लक्षण बहुत कुछ स्वयं उसपर लागू भी होते थे। कुछ समय पश्चात् किसी गुप्त विरोधीवर्गके प्रयत्नोंसे उस साधुकी कुछ नैतिक-आचारिक पोलोंका पता चला। ऐसी बातोंमे रुचि रखनेवाले खोज-प्रिय व्यक्तियोंने उन कथित आरोपोंके सम्बन्धमे छानबीन की और उन आरोपोंको किसी सीमातक सच पाया। यह स्पष्ट हो गया कि उस साधुकी कहनी और करनीमे बहुत अन्तर है और उसका बहुत कुछ दिखावा आडम्बरको भूमिपर स्थित है। साधुकी इन पोलोंकी चर्चा धीरे-धीरे नगरमें फैल गई और उसके बहुतसे भक्त और प्रशंसक उससे विमुख हो गये । उसकी लौकिक समृद्धिके साथ-साथ मुखका तेज भी धोरे-धीरे बहुत घट गया और उदरपूर्तिके लिए उसे नगरमें भिक्षाकी फेरियाँ लगानेपर उतर आना पड़ा। साधुका मान दिनोंदिन नगरमे गिरता गया और यह नौबत आ गई कि उसे भिक्षा-द्वारा भर पेट अन्न प्राप्त होना कठिन हो गया। अब उसने छोटी-छोटी मजदूरियाँ और टहलके काम करके अपना पेट भरना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसकी स्थितप्रज्ञता और जीवन्मुक्तताका उपहास करना भी नगरवासी भूल गये और वह नगरका एक उपेक्षित, निम्नतम कोटिका नागरिक बनकर रह गया।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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