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________________ अज्ञातका मोल नदीके किनारे मछुओंका एक गांव था। ये लोग नदीमें जाल लगाकर मछलियोंको पकड़ते थे। मछली ही उनका भोजन और व्यापारकी जिन्स थी। एक बार कुछ मछवाहे अपनी डोंगीपर सवार, बीच नदीमे जाल बिछाये मछलियाँ पकड़ रहे थे। संयोगवश मछलियोंके बीच एक घोंघा भी उसमें आ फँसा। सन्ध्या समय उन्होंने किनारे पहुँचकर दिन भरकी कमाईका बँटवारा किया। उस घोंघेको कोई भी अपने हिस्सेमे नहीं लेना चाहता था। स्पष्टतया वह कोई खानेकी वस्तु नहीं थी। किन्तु कुछ सोचकर एक मछवाहेने उस घोंघेको अपने हिस्सेमे स्वीकार कर लिया । घोंघा इतना बड़ा और भारी था कि उसे लेनेपर एक भी मछली उसके हिस्सेमें नहीं पड़ी। लेकिन वह एक नई, सर्वथा अज्ञात वस्तु थी और इसीलिए उसके प्रति कुतूहल इस मछवाहेके मनमें जाग उठा था। उसके घरमें रात और अगले दिनके भोजनके लिए पर्याप्त मछलियां रक्खी हुई थी और अगली रातके लिए नई पकड़नेमें उसे कोई सन्देह नहीं था। वह घोंघेको अपने घर ले गया। रातमें घोंघेने अपने खोलसे बाहर मुँह निकाला और मछवाहेसे कहा'मुझे स्वीकारकर तुमने मेरी रक्षा ही नहीं की, अपने लिए भी बड़ी बुद्धिमत्ताका काम किया है । वे लोग मुझे नदीकी रेतमें फेंक देते और धरतीपर चलनेमें असमर्थ होनेके कारण मैं वहीं पड़ा-पड़ा कुछ दिनोमें मर जाता । मैं तुम्हारे किसी उपयोगका नहीं हूँ, फिर भी तुम्हे उस जगह ले
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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