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________________ ईश्वर या दर्पण ? मेरे जीवनका लेखा-जोखा जाँचनेके बाद देवताओंने मुझे ईश्वरके महलमें जानेका 'पास' दे दिया। ईश्वरके परम समृद्ध, असाधारण रूपमें सुसज्जित ड्राइंग हॉलमे मैने प्रवेश किया। हॉलके भीतर सामनेकी दीवारपर टंगे हुए ईश्वरके सैकड़ों चित्र थे। मेरे पथ-दर्शकने बताया कि वे विविध युगोंमें विविध धर्माचार्यो और चित्रकारों द्वारा बनाये हुए ईश्वरके ही चित्र थे। उनकी वेश-भूषा, रूप-रंग, आकार-प्रकार और भाव-भंगिमामें बहुत विविधता होते हुए भी वे मूलतः एक ईश्वरके ही चित्र थे। 'ईश्वरके ये चित्र एकसे-एक सुन्दर और अत्यन्त भव्य है' मैने अपने पथ-प्रदर्शकसे कहा-'लेकिन मैं उसके चित्रोंको नही, स्वयं उसे ही देखना चाहता हूँ । क्या वह स्वयं आकर इस हॉलमें नहीं बैठते ?' __'अवश्य आप उनसे मिलेंगे' मेरे पथ-दर्शकने कहा-'चलिए, स्नानादि से शुद्ध और स्वस्थ होकर आप जब यहां फिर आयेंगे तब उनके दर्शन पायेंगे।' ईश्वरीय महलके स्नान-गृहमें जाकर मैंने राहके मैले कपड़े उतारकर धूल और पसीनेसे सने अपने शरीरको साफ़ किया। ईश्वरके ड्राइंग हॉलमें जब मैं लौटा तो मेरे पथ-दर्शकने कहा 'ये सभी चित्र यहाँ आने वाले विविध चित्रकारोंके बनाये हुए ईश्वरके ही चित्र हैं। लेकिन ये चित्र ही नहीं, ईश्वरके दर्शन-कक्षकी खिड़कियोंके पर्दे भी है। इनमें से किसी भी चित्रित पर्देको उठाकर आप उसके पीछे वाली खिड़कीसे ईश्वरके दर्शन कर सकते हैं।'
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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