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अमृतके प्याले
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उसे तैयार किया कि वह उस अमृत-स्रोत तक पहुँचकर स्वयं अमृतका पान करे और एक प्यालेमें भरकर अपने नगर वासियोके लिए भी लेता आये । उन्हे पता था, और यह बात बिलकुल ठीक भी थी, कि अमृतका एक बूँद एक सहस्र मनुष्योंको अमर बनानेके लिए पर्याप्त था । इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ धातुके अत्यन्त सुविधा जनक प्याले देशके महानगरके बड़े कारखाने में ढालकर इन लोगोको दे दिये गये ।
मानव-जातिके ये प्रतिनिधि अमृत स्रोतकी ओर चले और उनमेसे अधिकांश वहाँ तक पहुँच गये। उन्होंने अमृत स्रोतसे अमृतका पान किया और अपने-अपने प्याले भरकर अपनी बस्तियोंको लौट आये ।
इन प्रत्यागत, अमरता प्राप्त मानवोंके स्वागतके लिए प्रत्येक बस्तीमें वहाँके लोग एक बड़ी सभामे एकत्र हुए और अपने अमृत-वाहकका अभिनन्दन करके उन्होंने उस अमृतका प्रसाद पाया ।
किन्तु लाये हुए अमृतकी उन बूँदोंमें अमृतका नहीं, उस प्यालेकी विशुद्ध, गली हुई धातुका ही स्वाद और प्रभाव था ।
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मेरे कथा- गुरुका कहना है कि अमृत लेकर लौटे हुए कुछ अमर-जनोंका अपने समीप एकत्र समुदायोंको अपने प्यालोंका 'अमृत' पिलानेका क्रम अब भी चल रहा है । वे अपने समुदायोके अनुरोधसे विवश होकर ऐसा कर रहे है । कुछ थोड़े-से अमर जनोने ऐसा करनेसे इनकार भी कर दिया है, किन्तु आजके व्यवसाय - कौशल के युगमे एक बड़ी संख्या ऐसे अमृतवितरकोंकी भी उत्पन्न हो गई है जिन्होंने अमृत-स्रोत तक जानेका कभी भी कष्ट नहीं उठाया । कथा - गुरुका यह भी स्पष्ट संकेत हैं कि अमृत संसारकी किसी भी धातु या तत्त्वसे निर्मित पात्रमें भर कर पुनः शुद्ध रूपमें उससे वापस नहीं निकाला जा सकता और अमरत्व प्राप्त करनेके लिए सीधे अमृत स्रोतसे ही, बिना किसी धातु या अपने पराये हाथसे उसका स्पर्श किये, उस अमृतका पान करना अनिवार्य है ।
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