SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनबिक मोती पृथ्वीके अंचलपर एक ओर लहराता हुआ विशाल सागर था और उसके समीप ही धरतीकी गोदमे एक छोटा-सा पोखर । सागरके गर्भमे बहुमूल्य मोतियोंकी राशि थी और पोखर था एकदम अकिंचन । सागरके वक्षपर मोती निकालनेवाले पनडुब्बोकी चहल-पहल रहती थी किन्तु पोखर बेचारा एकदम उपेक्षित था। वह अपने एकाकीपन के कारण बहुत दुःखी और सदैव उद्विग्न रहता था। अपने कुलदेवता वरुणके दरबारमे उसने पुकार की। वरुण देवने कहा-'समुद्रके प्रति तुम्हारी यह ईर्ष्या और दैन्य व्यर्थ है। किसी रात क्षण भरके लिए भी तुम शान्त होकर देखो, तुम्हारे पास समुद्रसे कहीं बड़ी सम्पत्ति है।' पोखरने आशान्वित होकर वरुणके आदेशका पालन किया । क्षोभसे चंचल उसकी लहरोंके शान्त होते ही उसने देखा, उसकी छातीपर छोटेबड़े असंख्य जगमगाते मोतियोंकी एक राशि छितर गई है। उसके हर्षका पारावार न रहा। आकाशके तारोंका यह प्रतिबिम्ब उसने पहली बार ही उसके भीतर पाया था। किन्नु अगली भोर वे मोती उसके वक्षसे विलीन हो गये। दिनभर कोई भी प्रशंसक उसके तटपर नहीं आया। समुद्रके ऊपर उठनेवाले मानवोंके मधुर कोलाहलको वह मन मारे सुनता रहा । पोखरका सन्देह जगा । वरुणके दरबारमें उसने पुनः विलाप किया'मुझे जो सम्पत्ति गत रात्रि मिली वह नश्वर एवं अवास्तविक है, उसका कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है। उस सम्पत्तिके लिए मेरी कोई पूछप्रतिष्ठा नहीं हो सकती।'
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy