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ज्ञानके परदे
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समूचे भूगोलकमे अब कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो उसके आकर्षण और आदेशके बाहर रह सके।
वह राजकुमार ही तबसे इस भूमण्डलका प्रकट-परोक्ष शासक है और उसकी अखण्ड बाह्यसत्ताके परिधानमे सौन्दर्यका और सौन्दर्यके भी अन्तरालमें बोधका ही निवास है। कहते है कि तभीसे ज्ञानका सौन्दर्य के रूपमें और सौन्दर्यका शक्तिके रूपमें प्रकट होना अनिवार्य हो गया है।