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नवमाँ अध्याय चौर्य कार्य में परधन--रूपी प्राण हरे जाते हैं। बिना असत्य वचन के बोले चोर न बन पाते हैं । इसीलिये है चौर्यकार्य हिंसा असत्य की छाया । तभी इसे हिंसा असत्यके अन्तर्गत बतलाया ॥१८॥ जिसने झूठ बोलना छोड़ा उसने चोरी छोड़ी। हिंसा छोड़ चला जो कोई छोड़ी यह सिरफोड़ी ॥ मनमे दया बसी चोरीने रिश्तेदारी तोड़ी । कैसे रहे निगोड़ी जब हे सत्य अहिंसा जोड़ी ॥१९॥
दोहा यों अचौर्य व्रत है कहा सत्य-अहिंसा-अंश । है अचौर्य के भ्रंश में सत्य-अहिंसा-भ्रंश ॥२०॥ त्यों अपरिग्रह भी कहा सत्य-अहिंसा-अंश । जहां परिग्रह है वहां सत्य-अहिंसा-भ्रंश ॥२१॥ सामाजिक सम्पत्ति के हिस्से के अनुसार । अगर मिली सम्पत्ति तो हुआ न पापाचार ॥२२॥ जो जनसेवा के लिये हा उपकरण--कलाप । उसका यदि संग्रह किया तो न परिग्रह पाप ॥२३॥ पर मालिक बनना नहीं मालिक सकल समाज । तू सेवक ही है सदा भले मिला हो ताज ॥२४॥ जो सेवकता भूल कर जोड़े बहुविध अर्थ । करता विविध अनर्थ वह उसका जीवन व्यर्थ ॥२५॥