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कृष्ण-गीता दोनों ही निज निज विशेषता लिये हुए हैं । दोनों ही अबलम्ब परस्पर दिये हुए हैं ॥१५|| नरकी जो त्रुटि उस पूर्ण करती है नारी । नारी नरके लिये इमीसे है दुखहारी ॥ जो नारी की कमी उसे नर पूरित करता । इम प्रकार नर मकल दुःख नारीके हरता ॥१६॥ जब हैं दोनों जुदे जुदे तब निपट अवरे । जब दोनों अन्योन्य-सहायक तब हैं पूरे ॥ मानव के दो अंग समझलो हैं नरनारी । दोनों ही निज निज विशेषता में हैं भारी ॥१७॥ मामाजिक सुविधार्थ कार्य का भेद बनाया । उच्च नीच का भेद नहीं है इसमें आया ॥ कोई घरमें रहे रहे कोई घर बाहर । अपना अपना काम करें मिलकर नारीनर ॥१८॥ कार्य-भेद से जो स्वभाव का भेद दिखाता । सामाजिक संस्कार आदि से जो आजाता ॥ लगता है वह अचल किन्तु पर्याप्त चपल है। जहां परिस्थिति भिन्न वहांपर अदलबदल है ॥१९॥ कोमलता भीरुत्व अस्त्र-संचालन या रण । माया का बाहुल्य आदि के हैं जो कारण ॥ व स्वाभाविक नहीं, परिस्थिति से आते हैं। जहां परिस्थिति भिन्न वहांपर मिट जाते हैं ॥२०॥