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अध्याय-सूची
पृ. ८
प्रस्तावना
[ पृष्ठ १०] पहला अध्याय- (अजेन-मोह)
मङ्गलगान, श्रीकृष्ण का दूतत्व, युद्धनिश्चय, अर्जुन का मोह, युद्ध बन्द करने की प्रार्थना । दूसरा अध्याय ---- (निर्मोह)
श्रीकृष्ण का वक्तव्य--नातेदारी की व्यर्थता [गीत २] अन्याय का स्मरण | गीत ३] निर्मोह बनकर कर्म करने की प्रेरणा, अन्याय का प्रतिकार [गीत ४] स्वार्थी और अन्यायी की नातेदारी व्यर्थ [गीत ५] स्वार्थ के लिये नहीं किन्तु न्यायरक्षण के लिये ममभावी बनकर कर्म करने की प्रेरणा । तीसरा अध्याय .. [अनासक्ति ]
पृ. १४ अर्जुन---युद्ध और समभाव एक साथ कैसे रहें ? श्रीकृष्ण-- सारा संसार विरोधों का समन्वय हे [गीत ६], समन्वय के दृष्टान्त [गीत ७], अर्जुन-निरर्थक युद्ध क्यों करूं ? [ गीत ८) श्रीकृष्णसंसार नाटक शाला हे नाटक के पात्र की तरह काम कर गीत ९], सच्चा खिलाड़ी बन (गीत १०), खिलाड़ी बालकों से योग सीख (गीत ११) । अर्जुन-एक मनको विभक्त कैमे करूं !