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पहिला अध्याय
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जिनकी सुरक्षित गोद में, पलकर खड़ा मैं हो सका, जिनकी कृपा से नर बना, पशुरूप अपना धो सका ॥ २० ॥
उन पूज्य पुरुषों से करूं, सम्बन्ध यदि टूटा हुआ । फेकूँ उन्हीं पर बाण मैं, गांडीव से छूटा हुआ ||
तो नीति क्या रह जायगी, सौजन्य क्या रह जायगा । कैसे विधाता का हृदय रोये बिना रह पायगा ॥ २१ ॥ संसार में संतान का पालन करेंगे लोग क्यों ? संतान पालन का करेंगे, लोग फिर दुखभोग क्यों ।
ब्रह्मांड में होगा प्रलय, मानव न तब बच पायगा, बस मौत नाचेगी यहाँ, मरघट यहाँ रह जायगा ॥२२॥ धनु पकड़ने की भी कला, जिनने सिखाई थी मुझे । सब शस्त्र-विद्या की यहां, झाँकी दिखाई थी मुझे ||
उन पूज्य द्रोणाचार्य का, कैसे करूंगा घात मैं । भगवान के दरबार में, कैसे करूंगा बात मैं ॥२३॥ माता पिता से भी अधिक, गुरुदेव का उपकार है, कल्याण-कारक हैं वही, उनका अनोखा प्यार हैं ।
उपकार सारे भूलकर उनसे लहूँगा आज मैं । हा आज जोहुँगा यहाँ सारे नरक के साज मैं ||२४|| जिनको खिलाया गोद में था, प्रेम से चुंबन किया, सिर और कंधों पर किया, हाथों दिया हाथों लिया ।
उनपर चलेगा अब धनुष, धिक्कार है धिक्कार है; वात्सल्य का है खून यह, यह घोर अत्याचार है ॥२५॥