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कृष्ण- गीता
कौन पढ़ा सकता है तुझको तुझमें अगर न ज्ञान । सूर्य करे क्या जब हों अपनी आँखें घूक समान ॥ तब गुरु का प्रयत्न बेकार । भाई पढ़ले यह संसार ॥ १२१ ॥
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सुन सब की कर अपने मनकी पर विवेक रख संग | अंग अंग में यौवन उछले उछले ज्ञान - तरंग ॥
निज पर सबका हो उद्धार । भाई पढ़ले यह संसार ॥ १२२ ॥
दोहा
जो कहना था कह चुका अब तू स्वयं विचार । एक बात में भूल मत चारों ओर निहार ॥ १२३ ॥ क्या कहते सब धर्म हैं क्या कहते गुरु लोग | क्या कहता तेरा हृदय कर सब का संयोग ॥ १२४॥ देख सत्य भगवान का पूर्ण विराट स्वरूप । क्षीरोदधि को देखले छोड़ अन्धतम कूप ॥ १२५॥ उस विराट भगवान के अंग अंग प्रत्यंग | हैं विचित्र सबमें भरे दुनिया के सब रंग ॥ १२६॥
अंग अंग में रम रहे दिव्य दृष्टि से देखले जग
कोटि कोटि ब्रह्मांड । के सारे कांड ॥ १२७॥ सर्व धर्म सब नीतियाँ सर्व योग पुरुषार्थ ।
देख नियम यम ज्ञान सब दिव्य दृष्टि से पार्थ ॥ १२८॥