________________
चौदहवाँ अध्याय
कथारूप जो शास्त्र हैं उन्हें न कह इतिहास । यद्यपि हैं इतिहास से अधिक सत्यके पास ॥९१॥
जो कुछ होता जगत में उसे सत्य मत मान ।
जो कुछ होना चाहिये उसे सत्य पहिचान ॥ ९२ ॥ कथा-शास्त्र का है सदा तथ्य-मूल्य कुछ अल्प । सत्य- मूल्य पर है अधिक है कल्याण अनल्प ॥९३॥ देख कथा साहित्य में सच्चरित्र निर्माण । जितना हो निर्माण यह उतना जग- कल्याण ॥९४॥ शास्त्र - परीक्षण कर सदा रख पर ऐसी दृष्टि | मर्म देख जो कर सके सन् शिव सुन्दर सृष्टि ||९५|| गुरु
शास्त्र परीक्षण की तरह गुरु की भी कर जाँच । गुरु-वेषी कोई कुगुरु दे न साँचको आँच ॥९६॥ जीवन भी देकर करे निज पर का उद्धार । आधार ॥९७॥ परकार्य ।
अनिवार्य ॥ ९८ ॥
I
[ १२९
बही सुगुरु है जगत में धीरज का मूर्त्तिमंत जो साधुता साधे जो जीवन भर जिसके लिये देना है जितना ले उससे अधिक जगको करता दान । जिसका जीवन बन रहा मूर्तिमंत व्याख्यान ॥९९॥ करके दिखलाता सदा जो कुछ बोले बोल ।
वह मानव है, है नहीं कोरा बजता ढोल ॥१०-० ॥ वह चरित्र बल से बली वेष न जिसकी पूर्ति । वह मानव है, है नहीं-- जड़ पदार्थ की मूर्ति ॥ १०१ ॥