________________
१२८
कृष्ण गीता बनता काई शास्त्र जब देशकाल वह देख । शास्त्र नियम होते नही कभी वन की रेख ॥८०॥ मत्य अहिंसा हैं अटल सब धर्मोका सार । किन्तु विविधता से भरा है उनका व्यवहार ॥८॥ घबरा मत वैविध्य से देख जगत्कल्याण । टुकड़े टुकड़े जोड़कर पूर सभी में प्राण ॥८२॥ दृष्टान्तों का काम है खींचे जीवन चित्र । महाजनो को देख जन जीवन करें पवित्र ||८३|| ये कल्पित दृष्टान्त हों या कि अकल्पित-तथ्य । नथ्यातथ्य विचार मत हैं दोनों ही पथ्य ॥८४॥ नीति सिखावे जो कथा वह अतथ्य या तथ्य । दोनों में ही सत्य है है वह जगको पथ्य ॥८५॥ पर अतथ्य ऐसा न हो करे न जग विश्वास । अगर असम्मव जग कहे तो है व्यर्थ प्रयास ॥८६॥ मम्भव सी सब को लगे दे सत्पथ की दृष्टि । हुई कथा साहित्य में धर्म--शास्त्र की सृष्टि ॥८७॥ अगर न विश्वसनीय तो क्या उसका उपयोग । झूठी बातें समझकर नाक सिकोड़ें लोग ॥८८॥ बात भल कल्पित रहे पर यदि विश्वसनीय । असर करे तो हृदय पर लगे मत्य कमनीय ॥८९॥ पिघल पिघल कर दिल बहे धुल जायें सब पाप । स्वच्छ हृदय में धर्म हो बिम्बित अपने आप ॥९॥