________________
कृष्ण-गीता
दर्शन - शास्त्र - विवाद ये समझ न धर्माधार । धर्म यही हैं सकल जग पावे तेरा प्यार || ५०|| ईश्वरवादी मानले ईश्वर का संसार । ईश्वर के संसार पर क्यों हो अत्याचार ॥ ५१ ॥
*
कोई देखे या नहीं देखे ईश्वर- दृष्टि । इसीलिये छिपकर कभी कर न पाप की सृष्टि ॥५२॥ सम्राटों से भी बड़ा है वह न्यायाधीश । उससे छिप सकता न कुछ व्यापक वह जगदीश । ५३ अगर छिपाया जगत से तो भी है निःसार । ईश्वर से क्या छिप सके जिसकी दृष्टि अपार ॥ ५४ ॥ छलसे यदि पाया नहीं यहां पाप का दंड | पापी पायेगा वहां ईश्वर - दंड प्रचंड ॥ ५५ ॥ ऐसी श्रद्धा है जहां वहां न रहता पाप । पापहीन पर ईश की करुणा अपने आप || ५६ ॥ कर्मवाद जिसने लिया उसका है यह कार्य । जगको धोखा दे नहीं फल मिलना अनिवार्य ॥ ५७॥ दुनिया फल दे या न दे अटल कर्म का दंड | कर्म शक्ति करती सदा खंड खंड पाखंड ॥५८॥ है गवाह अथवा नहीं कर्म को न पर्वाह । भला कभी क्या देखता विष गवाह की राह ॥ ५९ दोनों बाद सिखा रहे हमें एक ही बात । सदसत् कर्मों का यहां फल मिलता दिनसत || ६०॥ .
१२]