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दसवाँ अध्याय
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पाण्डव-दल की विजय में है नारी-सन्मान । नारी के सन्मान में पशुता का अवसान ॥९॥ पुत्र-मोह-तांडव मिटे सज्जन ठगा न जाय । धर्मराज की जीत से विजयवन्त हो न्याय ॥९॥ वर्तमान ही देख मत भूत--भविष्य--विचार । फिर अपना कर्तव्य कर कर सुखमय संसार ॥९२॥
[हरिगीतिका] कर्तव्य-निर्णय की निकष कसले तुझे जो मिल गई। श्रद्धा सुरक्षित कर यहां संदेह से जो हिल गई ॥ श्रद्धालु ज्ञानी दृढ़ मनस्वी बन, न बन पर क्लीव तू । कर्तव्य-पथ आगे पड़ा है चल उठा गांडीव तू ॥१३॥
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