________________ 74 ] कृष्ण-गीता प्राण कर दें पर-लोक-प्रयाण / जगत-हित में अपना कल्याण // 41 // अपना अपना स्वार्थ तके सब भलें पर का स्वार्थ / अपना डूबे पर का डूबे सकल स्वार्थ परमार्थ // अकेले तड़पें सबके प्राण / जगत-हित में अपना कल्याण // 42 // सब का स्वार्थ एक है जग में ब्रह्म भरा है एक / उसने पाई मुक्ति जिसे हो एक-अनेक-विवेक / / यही सब गाते वेद पुराण / जगत-हित में अपना कल्याण // 43 // जितना जग में कामसुख वह परके आधीन / क्षण भी पर को भूल मत बन मत प्रेम-विहीन // 44 // क्या देना है जगत को यदि है यही विचार / तो लेना भी छोड़ दे मत बन भू का भार // 45 // अर्जुन-- लेना देना छोड़ कर क्यों न लगाऊं ध्यान / क्यों जग की चिंता करूं चिन्ता चिता समान // 46 // श्रीकृष्ण यदि कुछ भी लेना नहीं, मत ले, पर कर दान / लिया आजतक बहुत ऋण कर उसका अवसान // 47 // लिया नहीं लेता नहीं और न लेगा कार्य / ऐसा मनुज अशक्य है लेना है अनिवार्य // 48 //