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परकाया प्रवेश पारमार्थिक नहीं
ॐ महते नमः
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षष्ठ प्रकाश
इह चायं परपुर- प्रवेशश्चित्रमात्र कृत् । सिद्ध येन वा प्रयासेन, कालेन महताऽपि हि ॥१॥ जित्वाऽपि पवनं नानाकरणः क्लेशकारणैः । नाडी-प्रचारमायत्तं, विधायाऽपि वपुर्गतम् ॥२॥ अश्रद्धेयं परपुरे, साधयित्वाऽपि संक्रमम् । विज्ञानैकप्रसक्तस्य, मोक्षमार्गो न सिध्यति ॥ ३ ॥
अर्थ - यहाँ पर परकाया में प्रवेश करने की जो विधि कही है, वह केवल आश्चर्य(कुतूहल ) जनक ही है, उसमें अशमात्र भी परमार्थ नहीं है, और उसकी सिद्धि भी बहुत लम्बे काल तक महान् प्रयास करने से होती है और कदाचित् नहीं भी होती। इसलिए मुक्ति के अभिलाषी को ऐसा प्रयास करना उचित नहीं है। क्लेश के कारणभूत अनेक प्रकार के आसनों आदि से शरीर में रहे वायु को जीत कर भी, शरीर के अन्तर्गत नाड़ी-संचार को अपने अधीन करके भी और जिस पर दूसरे श्रद्धा भी नहीं कर सकते हैं, उस परकाया प्रवेश में सिद्धि प्राप्त करने की कार्यसिद्धि करके जो पापयुक्त विज्ञान में आसक्त रहता है, वह मोक्षमार्ग सिद्ध नहीं कर सकता है ।
कितने ही आचार्य प्राणायाम से ध्यान की सिद्धि मानते हैं, ऐसी पूर्वकथित बात का दो श्लोकों द्वारा खंडन करते हैं
तन्नाप्नोति मनः- स्वास्थ्यं, प्राणायामैः कथितम् । प्राणस्यायमने पीड़ा, तस्यां स्यात् चित्तविप्लवः ||४|| पूरणे कुम्भने चैव रेचने च परिश्रमः ।
चित-संक्लेश करणात्, मुक्तः प्रत्यूहकारणम् ॥५॥
अर्थ - प्राणायाम से पीड़ित मन स्वस्थ नहीं हो सकता ; क्योंकि प्राण का निग्रह