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योगशास्त्र:पंचम प्रकाश
अर्थ-ब्रह्मरन्ध्र से बाहर निकल कर दूसरे के शरीर में अपान-(गुदा) मार्ग से प्रवेश करना चाहिए। प्रवेश करने के बाद नाभि-कमल का आश्रय ले कर सुषुम्णानाड़ो के द्वारा हृदयकमल में जाना चाहिए। वहां जा कर अपनी वायु के द्वारा उसके प्राणसंचार को रोक देना चाहिए और तब तक रोक रखे कि जब तक वह निश्चेष्ट हो कर गिर न पड़े। अंतर्मुहूर्त में वह आत्मवेह से मुक्त हो जाएगा। तब अपनी ओर से इन्द्रियों की क्रिया प्रकट होने पर योगी उस शरीर से अपने शरीर की तरह सर्व क्रियाओं में प्रवृत्ति करे । बुद्धिमान पुरुष आधा दिन या एक दिन तक दूसरे के शरीर में कोड़ा करके इसी विधि से फिर अपने शरीर में प्रवेश करे। परकायाप्रवेश का फल कहते है
क्रमेणवं परपुरप्रवेशाभ्यासक्तितः ।
विमुक्त इव निर्लेपः स्वेच्छया संचरेत्सुधीः ॥२७३॥ अर्थ-इस प्रकार बुद्धिमान योगी दूसरे के शरीर में प्रविष्ट करने को अभ्यासशक्ति उत्पन्न होने के कारण मुक्तपुरुष के समान निलेप हो कर अपनी इच्छानुसार विचरण कर सकते हैं।
इस प्रकार परमाहंत श्रीकुमारपाल राजा को जिज्ञासा से माचार्यश्री हेमचनाचार्य-सूरीश्वररचित 'अध्यात्मोपनिषद्' नामक पट्टबड अपरनाम 'योगशास्त्र' का स्वोपविवरणसहित पंचम
प्रकाश सम्भूर्ण हुआ।