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योगशास्त्र : पंचम प्रकाश
अर्थ-जो मनुष्य बिना कारण अकस्मात् ही मोटा हो जाए या अकस्मात् ही दुबला हो जाए अथवा अकस्मात् ही क्रोधी स्वभाव का हो जाए या उरपोक हो जाए तो वह आठ महीने तक ही जीवित रहता है।
समग्रमपि विन्यस्तं, पांशी वा कर्दमेऽपि वा।
स्याच्चत्खण्डं पदं सप्तमास्यन्ते म्रियते तदा ॥१४२॥ अर्थ- यदि धूल पर या कीचड़ में पुरा पैर रखने पर भी जिते वह अपुरा पड़ा हुआ दिखाई दे, उसकी सात महीने में मृत्यु होती है । तथा
तारां श्यामां यदा पश्येत, शुष्येदधरतालु च । न स्वांगुलित्रयं मायाद, राजदन्तद्वयान्तरे ॥१४३॥ गृध्रः काकः कपोतो वा, व्यावोऽन्योऽपि वा खगः ।
निलीयेत यदा मूनि षण्मास्यन्ते मृतिस्तदा ॥१४४॥ अर्थ- यदि अपनी आँख की पुतली एकदम काली दिखाई दे, किसी बीमारी के बिना ही ओठ और तालु सूखने लगें, मुंह चौड़ा करने पर ऊपर और नीचे के मध्यवर्ती वांतों के बीच अपनी तीन अंगुलियां नहीं समाएं। तथा गिद्ध, काक, कबूतर या कोई भी मांसभक्षी पक्षी मस्तक पर बैठ जाए तो उसको छह महीने के अन्त में मृत्यु होती है।
प्रत्यहं पश्यताऽननेऽहन्यापूर्य जलमुखम् । विहिते पूत्कृते शक्रधनुस्तु तत्र दृश्यते ॥१४॥ यदा न दृश्यते तत्त मासः षड्भिर्मृतिस्तदा ।
परनेत्रे स्वदेहं चेत् न पश्येन्मरणं तदा ।। १४६।। अर्थ-हमेशा मेघरहित दिन के समय मुह में पानी भर कर आकाश में फरर करते हए ऊपर उछालने पर और कुछ दिन तक ऐसा करने पर उस पानी में इन्द्रधनुष-सा दिखाई देता है । परन्तु जब वह इन्द्रधनुष न दिखाई दे तो उस व्यक्ति को छह महाने में मृत्यु होती है। इसके अतिरिक्त यदि दूसरे की आँख की पुतली में अपना शरीर दिखाई न दे तो भी समझ लेना कि छह मास में मृत्यु होगी।
कूर्परौ न्यस्य जान्वोभून्यकोकृत्य करौ सदा । रम्भाकोशनिभां छायां, लक्षयेदन्तरोद्भवाम् ॥१४७॥ विकासि च दलं तन, यदकं परिलक्ष्यते ।
तस्यामेव तिथो मृत्युः षण्मास्यन्ते भवेत् तदा ॥१४॥ अर्थ-दोनों घुटनों पर दोनों हाथों की कोहनियों को टेक करके अपने हाथ के दोनों पंजे मस्तक पर रखे और ऐसा करने पर नम में बादल न होने पर भी दोनों हाथों के बीच में डोडे के समान छाया उत्पन्न होती है, तो उसे हमेशा देखते रहना चाहिए। उस