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मृत्युज्ञान के विविध उपाय
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अर्थ - रोहिणी नक्षत्र, चन्द्रमा चिह्न, छायापथ- आकाशमार्ग, अरुंधती तारा और ध्रुव यह पाँच या इनमें से एक भी बिलाई न दे तो उसको एक वर्ष में मृत्यु होती है। इस विषय में टीका में अन्य आचार्य का मत वो श्लोकों द्वारा उद्धृत किया गया है, वह इस प्रकार है
"अरुन्धती ध्रुवं बंब, विष्णोस्त्रीणि पदानि च । क्षीणायुषो न पश्यन्ति, चतुषं मातृमण्डलम् । अरुन्धती भवेत् जिह्वा, ध्रुवो नासाग्रमुच्यते । तारा विष्णुपदं प्रोक्त, भुवी स्यान्मातृमण्डलम् ॥
'जिनकी आयु क्षीण हो चली है, वे अरूंधती, ध्रुव, विष्णुपद और मातृमण्डल को नहीं देख सकते । यहाँ अरुन्धती का अर्थ जिह्वा, ध्रुव का अर्थ नासिका का अग्रभाग, विष्णुपद का अर्थ दूसरे के नेत्र की पुतली देखने पर दिखाई देने वाली अपनी पुतली और मातृमण्डल का अर्थ भ्रकुटी जानना चाहिए ।
स्वप्ने स्वं भक्ष्यमाणं श्व-गृध्र - काक - निशाचरैः ।
उह्यमानं खरोष्ट्राचं यंदा, पश्येत् तदा मृतिः ॥१३७॥ अर्थ - यदि कोई मनुष्य स्वप्न में कुरो, गिद्ध, कौए या अन्य निशाचर आदि जीव द्वारा अपने शरीर को भक्षण करते देखे या गधा, ऊंट सूअर, कुत्ते आदि पर सवारी करता देखे या उनके द्वारा अपने को घसीट कर ले जाते देखे तो उसकी एक वर्ष में मृत्यु होगी ।
तथा --
रश्मिनि तावित्यं रश्मियुक्तं हविभुं जम् ।
यदा पश्येद् विपद्येत, तदेकादशमासतः ॥ १३८ ॥
अर्थ - यदि कोई पुरुष सूर्य को किरणरहित देखे और अग्नि को किरण-युक्त देखे तो वह ग्यारह मास में मर जाता है।
वृक्षाग्रं कुत्रचित् पश्येद् गन्धर्वनगरं यदि ।
पश्येत्प्रेतान् पिशाचान् वा, दशमे मासि तन्मृतिः ॥ १३९॥
अर्थ - यदि किमी मनुष्य को किसी स्थान पर गंधर्वनगर का प्रतिबिम्ब वृक्ष पर दिखाई दे अथवा प्र ेत या पिशाच प्रत्यक्षरूप में दिखाई दे तो उसकी वसवें महीने में मृत्यु होती है।
छदिमूं वं पुरीषं वा सुवर्ण रजतानि वा ।
स्वप्ने पश्येद् यदि तदा, मासान्नवैव जीवति ॥ १४०॥
अर्थ - यदि कोई व्यक्ति स्वप्न में उलटी, मूत्र, विष्ठा अथवा सोना या चांदी देखता है तो वह नौ महीने तक जीवित रहता है।
स्थूलोऽकस्मात् कृशोऽकस्माट कस्मादतिकापनः । अकस्मादतिभीरुर्वा, मासानष्टंव जीवति । १४१॥