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क्रोध का स्वरूप, दुष्परिणाम एवं उसे जीतने का उपाय
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अर्थ--- किसी प्रकार का निमित्त णकर कोष उत्पन्न होते ही सर्वप्रथम आग की तरह अपने आश्रयस्थान (जिसमें वह उत्पन्न होता है, उसी) को ही जलाता है । बाद में अग्नि की तरह दूसरे को जलाए, चाहे न भी जलाए। यदि सामने वाला व्यक्ति क्षमाशील होगा तो गीले वृक्ष के समान उसे जला नहीं सकेगा ।
व्याख्या - यहाँ पर क्रोध के विषय में आन्तर - श्लोकों का भावार्थ प्रस्तुत करते हैं
'कोई साधक आठ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्षं तक चारित्र की आराधना करे, उतने ही वर्ष के तप को क्रोधरूपी आग क्षणभर में घास के ढेर के समान जला कर भस्म कर देती है । अतिशय पुण्यपुंज से पूर्ण घट में संचित किया हुआ, समतारूपी जल क्रोधरूपी विष के सम्पर्कमात्र से पलभर में अपेय बन जाता है । क्रोधाग्नि का धुंआ फैलता फैलता रसोईघर की तरह आश्चर्यकारी गुणों के धारक चारित्ररूपी चित्र की रचना को अन्यन्त श्याम कर देता है । वैराग्यरूपी शमीवृक्ष के छोटे-छोटे पत्तों से प्राप्त शमरस को अथवा चिरकाल से आत्मा में उपार्जित शमामृत को पलाश के बड़े पत्तों के समान क्रोध नीचे गिरा देता है । जब क्रोध की वृद्धि होती है, तब प्राणी कौन-सा अकार्य नहीं करता ? सभी अकार्य करता है । द्वैपायनऋषि ने क्रोधाग्नि पैदा होने से यादवकुल को और प्रजासहित द्वारिका नगरी को जला कर भस्म कर दिया था। क्रोध करने से कभी-कभी जो कार्य की सिद्धि होती मालूम होती है, वह क्रोध के कारण से नहीं होती, उसे पूर्वजन्म में उपार्जित प्रबल पुण्यकर्म का फल समझना चाहिए | अपने दोनों जन्मों को बिगाडने वाले, अपने और दूसरे के अर्थ का नाश करने वाले क्रोधरूपी जल को जो अपन शरीर में धारण करना है, उसे धिक्कार है ! प्रत्यक्ष देख लो, क्रोधान्धता से निर्दय बना आत्मा पिता, माता, गुरु, मित्र, मगे भाई, पत्नी और अपना विनाश कर डालता है ।
क्रोध का स्वरूप बता कर उस पर विजय प्राप्त करने के लिए उपदेश देते हैं
क्रोधवस्तदह्नाय शमनाय शुभात्मभिः ।
श्रयणीया क्षमेव संसार मिसारणिः ॥११॥
अर्थ उत्तम आत्मा को क्रोधरूपी अग्नि को तत्काल शान्त करने के लिए एकमात्र क्षमा का ही आश्रय लेना चाहिए। क्षमा ही क्रोधाग्नि को शान्त कर सकती है। क्षमा संयमरूपी उद्यान को हराभरा बनाने के लिए क्यारी है ।
व्याख्या -- प्रारम्भ में ही क्रोध को न रोका जाए तो बढ़ने के दाद दावानल की तरह उसे रोकना होता अशक्य है । कहा है कि थोड़ा-सा ऋण, जरा-सा भी घाव, थोडी-सो अग्नि और थोड़े-से भी कषायों का जरा भी विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि थोड़ को भी विराट् बनते ( बढ़ते ) देर
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नहीं लगनी ।" इसलिये क्रोध आते ही तत्काल क्षमा का आश्रय लेना चाहिए।
इस जगत् में क्रोध को उपशान्त करने के लिए क्षमा के सिवाय और कोई उपाय नहीं है । क्रोध का फल वैर का निमित्त होने से उलटे वह क्रोध को बढ़ाना है, शान्ति नहीं दे सकता। इसलिए क्षमा ही क्रोध को शान्त करने वाली है । वह क्षमा कैसी है ? इसके उत्तर में कहते हैं-क्षमा संयमरूपी उद्यान की क्यारी के समान है । क्षमा से नये-नये संयम स्थान और और अध्यवसाय स्थानरूप वृक्षों को रोपा जाता है, उसकी वृद्धि की जाती है। उद्यान में अनेक प्रकार के वृक्ष बोए जाते हैं. उसमें पानी की क्यारी बनाने से वृक्षो के पुष्प,