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धन्ना-शालिभद्र मुनियों द्वारा अनशन और माता भद्रा द्वारा खेद-प्रकाशन
२९७ दोनों शास्त्राध्ययन करके बहुश्रुत ज्ञानी बने, उसी प्रकार घोर तपश्चर्या भी करने लगे। वे दोनों शरीर पर ममत्वभाव से रहित हो कर पक्ष, महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने आदि का उग्र तप करते थे । इस प्रकार की उग्र तपस्या से दोनों का शरीर मांसरुधिररहित केवल अस्थिपंजर-सा, एवं मशक के समान हो गया । विचरण करते-करते एक बार भ० महावीर के साथ वे दोनों मुनि अपनी जन्मभूमि राजगृह पधारे । समवसरणस्थ त्रिलोकीनाथ भ० महावीर के अखड श्रद्धातिशय से बहुत-से नगरनिवासी उनके दर्शन-वन्दन के लिए उमड़ने लगे। धन्नाशालिभद्र ने भी मासक्षपण (मासिक उपवास) के पारणे पर भगवान को नमस्कार करके भिक्षा के लिए जाने की आज्ञा प्राप्त की। श्री भगवान् ने शालिभद्र से कहा --"आज तुम्हारा पारणा अपनी माता के हाथ से होगा।" शालिभद्र और धन्ना दोनों आहार के लिए चल पड़े । भद्रा के महल के दरवाजे पर आ कर दोनों मुनि खड़े रहे ; परन्तु तपस्या के कारण कृशकाय दोनों मुनियों को किसी ने पहिचाना नहीं। भद्रा भी श्रीवीरप्रभु, धन्ना एवं शालिभद्र को वन्दना करने की उत्कण्ठा से जाने की तैयारी में व्यग्र थी, इसलिए उतावल में उन्हें नहीं पहिचान सकी । दोनों मुनि कुछ देर रुक कर फिर आगे बढ़ गए । वे नगर के मुख्यद्वार वाली गली से जा रहे थे कि शालिमद्र के पूर्व जन्म की माता धन्या मिली । शालिभद्र को देखते ही उसके स्तनों से दूध की धारा बहने लगी। दोनों मुनियों को वन्दन करके उसने भक्तिभावपूर्वक उन्हें दही दिया। उसे ले कर दोनों मुनि महावीर प्रभु की सेवा में आए । वन्दना-नमस्कार करके गौचरी की आलोचना की। तत्पश्चात् हाथ जोड़ कर शालिभद्र ने पूछा - "भगवन् ! आपने फरमाया था कि आज तेरी माता के हाथ से पारणा होगा। वह कैसे हुआ ?" सर्वज्ञ प्रभु ने कहा-"शालिभद्र महामुने ! जिसने तुम्हें दही दिया, वह धन्या तुम्हारे पूर्वजन्म की एवं अन्य जन्मों की माता ही तो थी।" धन्या माता के हाथ से दिये हुए दही से पारणा करके शालिभद्रमुनि वीरप्रभु से अनशन की आज्ञा ले कर धन्नामुनि के साथ वैभारगिरिपर्वत पर गये । वहाँ धन्ना-शालिभद्र दोनों ने एक शिलाखण्ड का प्रमार्जन एवं प्रतिलेखन किया और पादपोपगमन नामक अनशन स्वीकार किया। उसी दौरान माता भद्रा एवं श्रेणिक राजा आदि भक्तिभाव से महावीर प्रभु के दर्शन-वन्दनार्थ पहुंचे । माता भद्रा ने प्रभु से पूछा -"प्रभो ! धन्ना मुनि और शालिभद्र मुनि कहाँ हैं ? वे हमारे यहां भिक्षा के लिए क्यों नहीं पधारे ? सर्वज्ञ प्रभु ने कहा--"भद्रे ! तुम्हारे घर पर आज दोनों मुनि पधारे थे, परन्तु तुम्हें यहां आने की व्यग्रता थी। अतः उतावल में तुम उन्हें नहीं पहिचान सकी। तुम्हारे पुत्र को उसके पूर्वजन्म की माता धन्या वापिस लौटते हुए रास्ते में मिली ; उसने उन्हें भिक्षा के रूप में दही दिया । उसी से दोनों ने पारणा किया है । और दोनों महासत्त्वशाली मुनि मेरी आज्ञा ले कर अनशन करके समाधिपूर्वक शरीर का त्याग करने हेतु भारगिरि पर गये हैं। वहां उन्होंने अनशन स्वीकार कर लिया है ।" यह सुन कर भद्रा श्रेणिक राजा के साथ भारगिरि पर पहुंची। वहाँ दोनों मुनियों को पाषाणशिला पर पाषाण के पुतले की तरह कायोत्सर्ग - ध्यान में स्थिर देखा । तपस्या से कृश बने हुए शरीर को भद्रा बड़ी मुश्किल से देख सकी। पूर्वकालीन सुखसम्पन्नता को याद करके उसका मन भर आया । अपने रुदन की प्रतिध्वनि से मानो वेभारगिरि को रुलाती हुई भद्रा रुधे हुए गले से बोली-"वत्स ! आज तुम मेरे घर पर आए, लेकिन मुझ अभागी ने तुम्हें पहिचाना नहीं। तुम दोनों मेरे इस प्रमाद पर गुस्सा मत करना। यद्यपि तुमने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया है; फिर भी मेरा मनोरथ था कि तुम अपने दर्शन से मेरे नेत्रों को आनन्दित करामोगे। परन्तु हे पुत्र ! शरीरत्याग के कारणभूत इस अनशन को प्रारम्भ करके तुम मेरे मनोरथ को भंग करने को उद्यत हुए
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