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इसलिए आगे कहते हैं
योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश
भवस्य बीजं नरकद्वारमार्गस्थ दीपिका |
शुचां कन्दः कलेर्म लं दुःखानां खाने गना ॥६७॥ अर्थ
स्त्री संसार का बीज है, नरकद्वार के मार्ग की दीपिका है, शोकों का कन्द है, कलियुग की जड़ है अथवा काले- कलह की जड़ है, दुःखों की खान है ।'
व्याख्या
स्त्री वास्तव में संमाररूपी पौधे का बीज है। यह संसार को बढ़ाने - जन्ममरण के चक्र में डालने वाली है । वह नरक के प्रवेशद्वार का रास्ता बताने वाली लालटेन के समान है । शोकोत्पत्ति की कारणभूत है, लड़ाई-झगड़े का मूल है, तथा शारीरिक और मानसिक दुखों की खान है ।
यहां तक यतिधर्मानुरागी गृहस्थ के लिए सामान्यतया मैथुन और स्त्रियों के दोष बताये है । अब आगे के ५ श्लोकों में स्वदारमंतोषी गृहस्थ के लिए साधारणस्त्रीगमन के दोष बताये हैंमनस्यन्यत् वचस्यन्यत् क्रियामन्यदेव हि ।
यासां साधारणस्त्रीणां ताः कथं सुखहेतवः ॥ ६८ ॥
अर्थ
जिन साधारण स्त्रियों के मन में कुछ और है, वचन द्वारा कुछ और ही बात व्यक्त करती हैं और शरीर द्वारा कार्य कुछ और ही होता है। ऐसी वेश्याएँ ( हरजाइयाँ) कैसे सुख की कारणभूत हो सकती है ?
व्याख्या
वारांगनाएं आमतौर पर मन में किसी और पुरुष के प्रति प्रीति रखती है, वचन में किसी अन्य पुरुष के साथ प्रेम बताती हैं, और शरीर से किसी अन्य ही व्यक्ति के माथ रमण करती हैं। ऐसी बाजारू औरतें भला कैसे विश्वसनीय हो सकती हैं और कैसे किमी के लिए सुखदायिनी बन सकती हैं । कहा भी है-- संकेत किसी ओर को करती हैं, याचना किसी दूसरे से करती हैं, स्तुति किसी तीसरे की करती हैं और चित्त में कोई और बैठा होता है, और पास ( बगल) में कोई अन्य ही खड़ा होता है; इस प्रकार गणिकाओं का चरित्र सचमुच अविश्वसनीय और अदभुत होता है । और भी देखिये - मांसमिश्र सुरामिश्र तेवविदुम्बितम् । को वेश्यावदनं चुम्बेदुच्छिष्टमिव भोजनम् ॥ ८६ ॥
मांस खाने के कारण बदबूदार, पुरुषों के द्वारा चुम्बन किए हुए, उच्छिष्ट को कौन चुमना चाहेगा ?
अथ
शराब पीने के कारण दुर्गन्धित तथा "निक जार (झूठे ) भोजन की तरह झूठे व गंदे वैश्या के मुख
अपि प्रदत्तसर्वस्वात् कामुकात् क्षीणसम्पदः । वासोऽप्याच्छेत्त मिच्छन्ति गच्छतः पण्ययोषितः ॥ ९ ॥