________________
दूष अतिषि-मत्कार में दिया जाता था। चरक संहिता और निघंटु में ऋष का अर्थ एक पौधा है, जो औषष में काम आता है। इसी प्रकार उक्षा सोमलता को कहते हैं जबकि इनका बैल अर्थ कर मांस-भक्षण के अर्थ में उक्त मि. राबर्ट ने प्रयोग किया है। चमंगशि के भिगोने से जो जल बहता था उससे विशाल नदी प्रकट हुई वह चंबल कहलाई । साकृति पुत्र रंतिदेव ने अतिथियों के लिए २०१०० गायें छूकर दीं। उन्हें स्नान कराने में उनके चर्म का आलंभन (घोकर साफ करने से उक्त नदी निकली। यहां महाभारत गांति पर्व १०३ में जो संस्कृत श्लोक है उसके आलंभन गब्द का हिमा करना अर्थ कर दिया गया है इससे यह भ्रांति हो गयी; जबकि गोमेध का अर्थ गोसंवर्धन है या इन्द्रियसंयम है, किन्तु इनका हिमापरक अर्थ कर दिया गया है। इसीलिए मुनि श्री विद्यानंदजी अपने प्रवचनों में यह स्पष्ट बताते हैं कि भ. महावीर हिमा के विरोधी थे, न कि वेदों के। उन्होंने अहिंमा रूपी शास्त्र से मटके हुए प्राणियों का हृदय परिवर्तन किया। हमें भी भावात्मक एकता की बात करना चाहिए । भ्रामक वातों का प्रचार करने वाले साहित्य से वचना चाहिए। . .
इम ग्रन्थ को लिखते हुए मुनिश्री ने अनेकांत और स्याद्वाद के स्वरूप पर इसीलिए रोचक उदाहरणों से विशद प्रकाश डाला है ताकि समन्वय की भावना और विश्वधर्म का लोकमानम पर अच्छा प्रभाव पड़े; क्योंकि म्याद्वाद महानुभूनिमय है। उसमें समन्वय की क्षमता है। वह उदारता के साथ अन्य वादों में आग्रह के अंग को छांट कर उन्हें अपना अंग बनाता है। यह बौद्धिक अहिंमा कही जाती है।
आज जैनों में ही सांप्रदायिकता और परस्पर ईर्ष्या द्वेप बढ़ रहे हैं। निर्वाण-महोत्सव के द्वारा बाहर हम भ. महावीर की देशना का प्रचार करना चाहते हैं और घर में उस पर अमल नहीं कर पा रहे हैं। मुनिश्री ही ऐसे हैं जो अपने अद्भुत व्यक्तित्व, त्यागमय जीवन तथा वक्तृत्व से भावनात्मक ऐक्य का प्रयत्न कर रहे हैं। 'परस्परोपग्रहो जीवानां' और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' सदृश वाक्यों की व्याख्या श्रोताओं को तभी प्रकाशित कर सकती है जब इन मूत्रों के व्याख्याता स्वयं निर्विकार और और अमांप्रदायिक हों। आजकल की प्रबुद्ध
* मांसौदनं मोमेण वापंभेण वा-पुत्र की माकांक्षा, पूर्णाय और वेदज्ञाता होने के लिए युवा व वृद्ध
बैल का मांस खावे (बहदारण्य ६-४-१८). + 'दिनकर' के उद्गार है कि 'सहिष्णुता, उदारता, मामाजिक संस्कृति, अनेकांतवाद, स्यावाद
पौर अहिंसा ये एक ही सत्य के अलग-अलग नाम हैं। असल में यह भारत वर्ष की सब से बड़ी विलक्षणता है जिसके अधीन यह देश एक हुमा है और जिसे अपनाकर सारा संसार एक