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तीर्थंकर महावीर
भूपति मौलि माणिक्य सिद्धार्थो नाम भूपतिः । कुण्डग्राम पुरस्वामी तस्य पुत्रो जिनोऽवतु ॥ - काव्य शिक्षा ३१
( कुण्ड ग्राम* नामक नगर के क्षत्रिय राजन्य नृपति सिद्धार्थ राजाओं के मुकुटमणि हैं । उनके पुत्र महावीर तीर्थंकर हमारी रक्षा करें ।)
जब ग्रीष्म का सूर्य अपनी प्रखर किरणों से जगत् को संतप्त कर डालता है, पक्षियों का उन्मुक्त गगन विहार वन्द हो जाता है, स्वच्छन्द विहारी हिरणों की खुले मैदान की आमोदमयी क्रीड़ा रुक जाती है, असंख्य प्राणघारियों की तृषा बुझाने वाले सरोवर सूख जाते हैं, उनकी सरस मिट्टी भी नीरस हो जाती है, जनता का आवागमन अवरुद्ध हो जाता है, प्राणदायक वायु भी तप्त ल् बनकर प्राणहारक वन जाती है, समस्त थलचर, नभचर प्राणी असह्य ताप से त्राहि-त्राहि करने लगते हैं ।
तब, जगत् की उस व्याकुलता को देखकर प्रकृति करवट लेती है, आकाश में सजल काले वादल छा जाते हैं, मंसार का सन्ताप मिटाने के लिए उनमें से शीतल जल-विन्दु टपकने लगते हैं. वाप्प ( भाप ) के रूप में पृथ्वी से लिये हुए जल- ऋण को आकाश सूद-समेत चुकाने के लिए जलधारा की झड़ी वाँध देता है । जिसमें पृथ्वी न केवल अपनी प्यास बुझाती है, अपितु असंख्य व्यक्तियों को प्यास
'प्रथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बुद्वीपस्य भारते विदेह इति विख्यातः स्वर्गखण्ड ममः श्रियः । नवाखण्डलनेवाली पद्मिनी खण्डमण्डनम् सुखांभ: कुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम् ।।'
--प्राचार्य जिनसेन, हरिवंश पुराण १/२११-५