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लोक-कल्याण की कामना से जो तप करते हैं, उनको हमारा प्रणाम । वन्वनात्मक जड़ तत्त्व पर विजय पाकर जिस दिन महावीर स्वामी के जीवन में आत्म चैतन्य का प्रकाश हुआ वह उनके जीवन का प्रथम प्रभात था। उसे ही शास्त्रों में श्री-सूर्योदय' कहा गया है। प्रत्येक सुनहली उषा इसी प्रकार के श्री-सम्पन्न सूर्योदय का संदेश हमारे लिए लाती है। प्रतिदिन बढ़ती हुई आयु के साथ हम इस संदेश का अधिकाधिक साक्षात्कार कर सकें, यही दैनिक पर्यवेक्षण के द्वारा हम सवका प्रयत्न होना चाहिये। -डा. वासुदेवशरण अग्रवाल
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तीर्घकर महावीर, जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका; महावीर डायरी मादि से।