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अर्पण
जिनश
PERTRESEARSEXMAHARASHIEREBERREWARMERRIEWERESTHESEBERRAHASREE
सम्यक्त्वधारी सन्त तुम हो
श्री जिनवरके नन्द आवक हे जिनधर्म-उपासक
जिनशासनके चन्द । मुनि बनोगे निकट कालमें
__ होगा केवलज्ञान; उपदेश देकर दोगे हरिको
रत्नत्रयका दान ॥ —ऐसे शुद्ध श्रावकधर्म-उपासक धर्मात्माओंको
परम बहुमानके साथ यह पुस्तक अर्पण करता हूँ।
ELESEARSESXAEBHAIRRESENTERTZBEBAHBEHEREBELIEBERESISTERESSHESEARNER
ENTERTERTISEMBERARRIEREBERRISHTRIERESTISASREHESTRATI