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[ श्रावकधर्म-प्रकाश उसे ही मुनिपना मानलेना वह कोई सच्चा नहीं; और वस्त्रसहित दशामें मुनिपना माने उसे तो गृहीत मिथ्यात्व भी छूटा नहीं; मुनिदशाके योग्य परम संवरकी भूमिकामें तीव्र रागके किस प्रकारके निमित्त छूट जाते हैं उसकी भी उसे खबर नहीं; अर्थात् उम भूमिकाकी शुद्धताको भी उसने नहीं जाना। वस्त्ररहित हुआ हो, पंचमहाव्रत दोषरहित पालता हो, परन्तु जो अन्तरंगमें तीन कषायके अभावरूप शुद्धोपयोग नहीं तो उसे भी मुनिपना नहीं। मुनिमार्ग तो अलौकिक है। महाविदेह क्षेत्रमें वर्तमानमें सीमंधर परमात्मा साक्षात् तीर्थकर तरीके बिराज रहे हैं वे ऐसा ही मार्ग प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसे अनन्त तीर्थकर हुए, लाखों सर्पक्ष भगवान वर्तमानमें उस क्षेत्रमें विचर रहे हैं और भविष्यमें अनन्त होंगे, उन्होंने वाणीमें मुनिपनेका एक ही मार्ग बताया है। यहाँ कहते हैं कि हे जीव ! ऐसा मुनिपना अंगीकार करने योग्य है; जो उसे अंगीकार न कर सके तो उसकी श्रद्धा करके श्रावकधर्म को पालना ।
श्रावक क्या करे?
श्रावक प्रथम तो हमेशा देवपूजा करे। देव अर्थात् सर्वशदेव, उनका स्वरूप पहचानकर उनके प्रति बहुमानपूर्वक रोज रोज दर्शन-पूजन करे। पहले ही सर्वशकी पहिचानकी बात कही थी। स्वयंने सर्वशको पहिचान लिया है और स्वयं सर्वश होना चाहता है वहाँ निमित्तरूपमें सर्वक्षताको प्राप्त अरहंत भगवानके पूजनबहुमानका उत्साह धर्मीको आता है। जिनमन्दिर बनवाना, उसमें जिनप्रतिमा स्थापन करवाना, उनकी पंचकल्याणक पूजा-अभिषेक आदि उत्सव करना, ऐसे कार्योंका उल्लास श्रावकको आता है, ऐसी इसकी भूमिका है: इमलिये उसे श्रावकका कर्तव्य कहा है ! जो उसका निषेध करे तो मिथ्यात्व है। और मात्र इतने शुभरागको ही धर्म समझे तो उसको भी सचा श्रावकपना होता नहीं-ऐसा जानो। सच्चे श्रावकको तो प्रत्येक क्षण पूर्ण शुद्धात्माका श्रद्धानरूप सम्यक्त्व वर्तता है, और उसके आधारसे जितनी शुद्धता प्रगट हुई उसे ही धर्म जानता है। ऐसी दृष्टिपूर्वक वह देवपूजा आदि कार्यों में प्रवर्तता है। समन्तभद्रस्वामी, मानतुंगस्वामी आदि महान मुनियोंने भी सर्वशदेवकी नम्रतापूर्वक महान स्तुति की है; एकभवावतारी इन्द्र भी रोम रोम उल्लसित हो जाये ऐसी अद्भुत भक्ति करता है। हे सर्वज्ञ परमात्मा ! इस पंचमकालमें हमें आपके जैसी परमात्मदशाका तो आत्मामें विरह है और इस भरत क्षेत्रमें आपके साक्षात् दर्शनका भी विरह है ! नाथ, आपके दर्शन बिना कैसे रह सकूँ ?" -इस प्रकार भगवानके विरहमें उनकी प्रतिमाको साक्षात् भगवानके समान समझाकर भाषक हमेशा दर्शन-पूजन करे।-"जिन प्रतिमा जिन