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[ श्रावकधर्म-प्रकार ......... [२०] ......
धर्मी श्रावकों द्वारा धर्मका प्रवर्तन ....................
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गुणवान श्रावकों द्वारा धर्मकी प्रवृत्ति चला करती है इसलिये वे श्रावक प्रशंसनीय हैं। श्रावक-श्राविका अपनी लक्ष्मी आदि अर्पण करके भी धर्मकी प्रभावना किया करते हैं। सन्तोंके हृदयमें धर्मकी प्रभावनाका भाव होता है; धर्मको शोभाके लिये धर्मात्मा-श्रावक अपना हृदय लगा देते हैं, ऐसी धर्मकी लगन उनके अन्तरमें होती है।
जहाँ धर्मी श्रावक निवास करता हो वहाँ धर्मकी कैसी प्रवृत्ति बलती है वह बताते हैं
यत्र श्रावकलोक एष वसति स्यात्तत्र चैत्यालयो यस्मिन् सोऽस्ति च तत्र सन्ति यतयो धर्मश्च तेः वर्तते । धर्म सत्यघसंचयो विघटते स्वर्गापवर्गाश्रयं
सौख्यं भावि नृणां ततो गुणवतां स्युः श्रावकाः संमताः ॥ २०॥ जहाँ ऐसे धर्मात्मा प्रावकजन निवास करते हों वहाँ चैत्यालय-जिनमन्दिर होता है, और जिनमन्दिर हो वहाँ मुनि मादि धर्मात्मा आते हैं और वहाँ धर्मकी प्रवृत्ति चलती है। धर्म द्वारा पूर्व संचित पापोंका नाश होता है और स्वर्ग-मोक्षके सुखकी प्राप्ति होती है। इसप्रकार धर्मकी प्रवृत्तिका कारण होनेसे गुणवान पुरुषों द्वारा प्रावक इष्ट है-आदरणीय है-प्रशंसनीय है।
भाषक जहाँ निवास करता हो यहाँ दर्शन-पूजनके लिये जिनमन्दिर बनवाता है। अनेक मुनि मादि विहार करते करते जहाँ जिनमन्दिर होता है वहाँ आते है, मौर उनके उपदेश भादिसे धर्मकी प्रवृत्ति बला करती है, और स्वर्ग-मोक्षका