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________________ जीव-अधिकार २५ यहाँ भो शरीर की ही बड़ाई कही गई है। तीर्थकर गरीर की गोभा मे. देव-मनुष्य-तिर्यच के अंतरंग को चुरा लेते हैं। भावार्थ--जीव, तीर्थकर के शरीर की शोभा को देखकर जैसा मुख मानते हैं वैमा मुख तीन लोक में अन्य वस्न को देखकर नहीं मानते है । यहाँ फिर शरीर की बढ़ाई है। नीर्थकर देव की ममग्न त्रिलोक में उत्कृष्ट निरक्षरी वाणी के द्वारा सब जीवों को कर्णेन्द्रियों में त्रिकाल अमन अर्थात् मुखमई गान्नग्म बरमता है। भावार्थ तीर्थकर की वाणी मुनना मत्र जीवों को चिकर लगता है, बहुन जीव मुखी होते हैं । यहां भी गरीर को बड़ाई है। आठ और एक हजार अर्थात् एक हजार आठ लक्षण महज हो जिनके शरीर के चिह्न है मे है नीर्थकर । भावार्थ-तीर्थकर के शरीर पर शख, चक्र, गदा, पद्म, कमल, मगर, मच्छ, ध्वजा इत्यादि मी आकृतियों की रेखाएं पड़ती है जिन समस्त गणों की एक हजार आट गिनना होती है। यहां फिर गरीर की बड़ाई है। तीर्थकर मोक्षमार्ग का उपदेश करते है । यहाँ फिर शरीर को बड़ाई है। इसमें शरीर और जीव एक ही है, हम तो ऐसी ही प्रतीति है. ---कोई मिथ्यामतोमा मानता है। समाधान -- प्रथ के रचयिता तो वचन व्यवहार मात्र में जोव और शरीर का एकरूप कहते है। इसमे मा कहा कि शरीर का तांत्र (वन्दन) तो व्यवहार मात्र जीव का स्तोत्र है। द्रव्यदृष्टि में देखने मे जीव और शरीर भिन्न-भिन्न है। इसमें जैमा म्तोत्र कहा वह तो म्वसिद्ध झूठा है क्योंकि शरीर का गुण कहने में जीव की म्नति नहीं होती है। जीव के जानगण की स्तुति करने में (जीव की) स्तुति होती है। प्रश्न-जैसे नगर का स्वामी गजा है इसमे नगर की स्तुति (नार्गफ) करने मे राजा की स्तुति होती है। उसी तरह गरीर का स्वामी जीव है इसमें शरीर की स्तुति करने मे जीव की स्तुति होती है। उत्तर-ऐसा नहीं है। राजा के निज (अपने) गुणों की स्तुति करने
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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