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बोक्-धिकार
शार्दूलविक्रीडित एकत्वे नियतस्य शुरुनयतो व्याप्तुरस्यात्मनः प्रसनानधनस्य वनामिह म्यान्तरेभ्यः पृषन् । सम्यग्दर्शनमेतदेवनियमावल्मा ताबालयम्,
तन्मुक्त्वा नवतस्वतंततिनिमामालाबनेकोतु नः ॥६॥
इस कारण से हममें शुद्ध चेतन पदार्थ विचमान होवे। भावार्थजीव वस्तु का चेतना लक्षण तो सहज ही है परंतु मिप्यात्व परिणाम के कारण प्रमित होता हुमा अपने स्वरूप को नहीं जानता है । इसलिए अज्ञानी ही कहाता है। इससे ऐसा कहा है कि मिप्या परिणाम के जाने पर यह ही जीव अपने स्वरूप का अनुभव करने वाला होता है। संसार अवस्था में जीवद्रव्य नवतस्वरूप परिणमन करता है सो तो विभाव परिणति है। इसलिए नवतत्त्वरूप का अनुभव मिथ्या है बोर उन नवतत्वों का अर्थात् जीवाजीवालव-बंध-संबर-निर्जरा-मोम-पुण्य-पाप का अनादि संबंध छोड़ कर ही जीव अपने स्वरूप का अनुभव करता है। जिस कारण से यही जीवद्रव्य सकलकोपाधि से रहित, पैसा है पता ही, प्रत्यक्षरूप से अनुभव होता है, निश्चम से बहो सम्यकदर्शन है।
भावार्ष-सम्यकदर्शन जीव का गुण है। वह गुण संसार अवस्था में विनाष परिणमन करता है। वही गुण जब स्वभाव परिणमन करे तो मोलमार्ग बनता है।
विवरण-सम्यक्त्वभाव होने पर नए भानावरणादिव्य कर्मानव रुक पाते है बार पुराने बंधे कर्मों की निर्जरा होजाती है। इसी से मोलमार्ग है।
शंका-मोक्षमा तो सम्पादन, मान बार पारित तीनों के मिलने से होता है।
उत्तर-पर पीव स्वस्म के अनुभवन में तीनों ही है। कैसा है पर बीब ? निर्विकल्प वस्तु मात्र की दृष्टि से देखने पर, पटरूप से, उखील्म है। भावा-बीब का लक्षण चेतना है बार चेतना तीन प्रकार की है :मानचेतना कर्मचेतना बोर कर्मफसतना। इनमें शानचेतना तो शुट चेतना है भोर मेष दो अशुट चेतना। बधुत चेतनास्प वस्तु का स्वाद सभी जीवों को अनादिकाल से समान है । उसरूप बनुभव सम्यक्त्व नहीं है । अपने गुण