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________________ साध्य-साधक अधिकार २३६ भावार्थ-मे विकल्प जितने कान तक होते हैं उतने काल तक गन म्वरूप का अनुभव नहीं होता। पद ग्वाप का अनुभव होने पर मे विकल्प विद्यमान ही नहीं होने, विचार किमका किया जाये वह गद्ध जोव मर्यकाल उद्योतस्वरूप है, द्रव्यरूप तथा पयायरूप में उसका प्रत्यक्ष ज्ञानमात्र ग्वरूप प्रगट हुआ है ॥६॥ संबंया -जाके हिरदे में ज्यादाद माधना करत, शड प्रातमको अनुभौ प्रगट भयो है। जाके संकलप विकलप के विचार मिटि, सदाकाल एकोभाव रस परिरगयो है। जाने बंध विधि परिहार मोम अंगोकार, ऐमो सुविचार पक्ष मोउ छोडि दयो है। जाको ज्ञान महिमा उद्योन दिन दिन प्रति, मोई भवसागर उलंघि पार गयो है ॥६॥ वसन्ततलिका चित्रात्मशक्तिसमुदायमयोऽयमात्मा मद्यः प्रणश्यति नयेक्षरणखंडपमानः । तस्मादस्खंडमनिराकृतखंडमेक मेकान्तशांतमचलं चिदहं महोऽस्मि ॥७॥ तिम कारण मे में जानमात्र प्रकार पुलह अगिटन प्रदंग हूँ, किमी कारण में अनुष्ट नहीं हुआ हूं महज ही अखण्ड कप हैं, ममग्न विकल्पों में गहन है, मथा प्रकार सर्व पर द्रव्या में गहन हूं और अपने ग्वरूप में मवंकाल में अन्यथा नहीं हूँ-मा चतन्यम्वरूप में है क्योंकि यह जीववस्तु द्रव्याधिक पर्यायाथिक म अनेक विकल्पमा नाचना कद्वाग अनेकरूप देखा हा ना मण्ड-खण्ड होकर मन में नाग को प्राप्त होता है। प्रश्न-इतने नय एक में केमे घटने है ? उनर-जीवद्रव्य मा ही है कि अग्निपना, एकपना, अनेकपना, प्रवपना, अध्रवपना इत्यादि अनेक उममें गुण हैं, और उन गुणों का द्रव्य में अभिन्नपना है अर्थात उन प ही जीवद्रव्य है, एक नय एकक्ति को कहता है किन्तु अनन्न शक्तियां है इस कारण एक-एक नय करते हुए अनन्त
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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