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________________ द्वादश अध्याय माध्य-साधक अधिकार वसंततिलका इत्याधनेकनिजशक्ति मुनिभरोऽपि यो जानमात्रमयतां न जहाति भावः । एवं क्रमाक्रमवितिविवचित्रं नव्यपयंधमयं चिदिहास्ति वस्तु ॥१॥ विद्यमान पवाक्त जानमात्र जीवद्रका द्रव्यगणपयांयम्प है। भावार्थ ... जीवरका द्रव्यपना कहा। वह जीवद्रव्य पूर्वोक्न प्रकार 'पहला विना ना अगन्ना उपने विषण प है परन्न 'न उपजे न विनश म अमरूप भदपद्धन ग भा प्रवनं रहा है. --मा उसमें परम अचभा है। भावार्थ कमवतो पयाय, अक्रमवनीगुण ---इस प्रकार जीव वस्तु गुणपर्यायमय है। जानमात्र जावा द्रव्यगण पर्याय को आदि लेकर अनेक नक्तिपूर्ण है, यांत अस्तित्र, वानुत्व प्रमेयन्व, अगुरुलघुत्व, मूक्ष्मत्व, कर्तृत्व, भोक्तत्व, सप्रदेशच. अमन व म्प है। वह यद्यपि अनन्त गणना रूप द्रव्य को सामथ्यं से सर्वकान भारतावस्थ है तथापि अपने ज्ञानमात्रभाव को नहीं त्यागतो है। भावार्थ-जो गुण अथवा पर्याय है वह सर्व चेतनारूप है इसीलिए चेतनामात्र जीव वस्नु है, प्रमाण है । भावार्थ-पूर्व में ऐसा कहा था कि उपाय अयात जीव वस्तु का प्राप्ति का साधन और उपय अर्थात साध्य वस्तु को कहंगे। सो उसमें प्रथम हा साध्य रूप वस्तु का स्वरूप कहा, अब साधन कहते हैं ॥१॥ संबंया -जोई जोर वस्तु पस्ति प्रमेय प्रगुरुवघ, प्रभोगी अमूरतीक परदेशवंत है।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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