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________________ ममयमार कलश टोका मईया-ग विशेष बलों, तबलों यह जीव मृवा मग पाये। . मान अायो जनचेतनको सब, कर्म दशा परम्प कहा। कम विलक्ष करे प्रमुभौ तह, मोह मिथ्यात्व प्रदेशम पाये। मो. गये उपजे मुबकेवल, सिस भयो जगमाहि न पाये॥२४॥ मंदाक्रांता रागद्वेषाविह हि भवति ज्ञानमज्ञानमावा. तो वस्तु त्वणिहितशा दृश्यमानी न किञ्चित् । सम्पाहारः पयत ततस्तत्वदृष्ट्या स्फुटन्तो मानज्योतिज्वलति सहजं येन पूर्णाचलाधिः ॥२५॥ माना गद ननन्य का अनुभव करने वाला जो जीव है वह प्रत्यक्षमगद जाय ग्यम्प के अनुभव के दाग राग-दंष दोनों को मन मे माकर दूर करे। गग-दंप के मिटने पर गुद जीव का स्वरूप जैसा है महज ही प्रकट होता है। वह ज्ञानज्योति मवंकाल अपनं म्बम्प रूप है। जीव द्रव्य अनादिकमयाग में उपजी मिथ्यान्वरूप विभाव परिणनि के कारण वर्तमान ममार अवस्था में गग-दपम्प अशुद्ध परिणति में व्याप्यध्यापकम्पमय परिणमन करता है अतः गग-उप दाना जानि के बशन परिणाम मना ग्वम्प का दष्टि में विचार करने पर कुछ भी पोज नहीं है। भावार्थ- जमे मना कर एक जीव घ्य है राग-रंप कोई दव्य नही है जीवको विभाव परिणाम है । सी जीव यदि अपने स्वभाव में परिणमन करे नी गग-दंप मर्वथा मिट जाए। ऐसा होना मुगम है, कुछ मुश्किल नही है । अगुट परिणति मिटनी है. शव परिणति होती है ॥२५॥ बाप-भोर कर्म संयोग. महज मियात्यम्प पर। गरोष परिणति प्रभाव, जामे न माप पर। तम मियात्व मिट गयो, भयो मकित उसोत पनि। मगष कद बस्तु माहि. छिन माहि गए मात ॥ अनुभव प्रभ्याम मुबराशि रमि, भयो मिपुरष तारलतरण। पूरण प्रकाश निहपाल निर्गल, बनारती बंदत परस ॥२५॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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