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ममयमार कलश टोका
मंदाक्रांता बन्धमदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेतनित्योद्योतस्फुटितसहजावस्थमेकान्तशुद्धम् । एकाकारस्वरसभरतोऽत्यन्तगम्भीरधोरं पूर्ण ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि ॥१३
जानावग्णादि अष्टकम की मूल सता का नाश करके निष्कर्म अवम्थाम्प परिणमन करता हा जीव द्रव्य समस्त कर्ममल के कलंक का विनाश हान पर जंमा अनन्न गुण विराजमान था वैसा प्रगट हुआ। वह आगामी अनन्नकाल पर्यन्त अविनम्वर है, उपमा रहित है। शाश्वत प्रकाश में स्फुटित गद्ध ज्ञान में अनन्तगुण विराजमान गुद्ध जीव द्रव्य की सहज अवस्था प्रगट हुई है । वह मवंया प्रकार शुद्ध है, अनंतगुणों से युक्त है और मकान में शाश्वत है...-अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनतमुख, अनंतवीर्य के अतिशय में एक रूप हुआ है तथा अपने निष्कम्प प्रताप में मग्न है।
भावार्थ मकन कमों के क्षय के लक्षण में युक्त माक्ष में आत्मद्रव्य स्वाधीन है; अन्य चाग गतियों में जीव पराधीन है। यह मोक्ष का स्वरूप कहा ॥१३॥ छप्पं भयो शुद्ध प्रकर, गयो मिथ्यात्व मूल नसि ।
कम कम होत उद्यात, सहज जिमि शुक्ल पक्ष ससि ।। केवलरूप प्रकाश, भास मुख राशि धरम ध्रुव । करि पूरण थिति प्राउ, त्यागि गत भाव परम हुआ। इह विधि अनन्य प्रभुता धरत, प्रगट बूंद सागर भयो। अविचल प्रखंड प्रनभय प्रलय, जीवद्रव्य जगमाहि जयो ॥१३॥
॥ इति नवमांऽध्यायः ।।